गणनायक जय ज्योतिचरण
गणनायक जय ज्योतिचरण, तेरे चरणो में नमन।
गुरु महाश्रमण नमन।।
ग्यारहवें पट्टधर का, दीक्षा कल्याण महोत्सव,
जन-जन में पुलकन है गण में छाया उत्सव।
वीतराग अवतारी तेरी सन्निधि सुखकारी,
चारित्र दिया मुझको, गुरु मेरे उपकारी।
अनुत्तर साधक को अभ्यर्थना, कर चरणों में नमन।।
नेमा मां की कुक्षि से जन्म लिया तुमने,
दुगड़ कुल को भी धन्य किया तुमने।
मुनि सुमेरमल हाथों सरदार शहर दीक्षा,
तुलसी महाप्रज्ञ गुरु से पायी अनुपम शिक्षा।
अप्रमत्त साधक की अभ्यर्थना, कर चरणों में नमन।।
नयनों में अमृत है गतिशील हैं तेरे चरण,
है सौम्य शांत मुद्रा, मंगलमय तेरी शरण।
खाली झोली भरना, अनुपम तेरी करुणा,
इस भव सागर से गुरु हमको पार करना।
निश्छल साधक की अभ्यर्थना, कर चरणों में नमन।।