आचार्यश्री महाश्रमण में है पवित्र आभामंडल

आचार्यश्री महाश्रमण में है पवित्र आभामंडल

वर्तमान में हम देख रहे हैं युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण के अनुपमेय व्यक्तित्व से जन-जन आकर्षित हो रहा है। जनता मानो लोह चुंबकवत आचार्यप्रवर के पास खींची आ रही हैं। चाहे कोई राजनेता हो, धर्मनेता हो या कोई फिल्म अभिनेता, चाहे कोई पुलिसकर्मी हो या कोई चोर लुटेरा। हर व्यक्ति आपके साक्षात दर्शन करने को लालायित है। आपकी पावन सन्निधि प्राप्त कर शांति व सुकून का अनुभव कर रहा है। प्रतिदिन सैंकड़ो हजारों लोग आचार्यश्री की उपासना में बैठे रहते हैं। प्राय: बिना काम आप उनको बतलाते भी नहीं, फिर भी वे घंटो-घंटो आपको एकटक निहारते रहते हैं, जैसे कोई त्राटक का प्रयोग कर रहे हो। आखिर क्या है इसका कारण? अनेकों लोग कहते हैं - गुरुदेव के पास जाते हैं उस समय हमारे मन में अनेक प्रश्न, शिकायतें होती हैं, आलोचना के भाव भी होते हैं, किन्तु जैसे ही गुरुदेव के सामने जाते हैं, साक्षात दर्शन करते हैं, सारे प्रश्न, शिकवा-शिकायतें समाप्त हो जाते हैं। आखिर कैसे होता है यह सब?
असम राज्य का एक हिंसक व्यक्ति जो अपने जीवन में लगभग सैंकड़ो मनुष्यों की हत्याएं कर चुका था। वह आपके दर्शन कर कहता है, गुरुजी! आपके दर्शन से मेरा मन बदल गया है। अब मैं प्रतिज्ञा करता हूं आगे से किसी की हत्या नहीं करुंगा। आखिर कैसे हुआ एक हिंसक व्यक्ति में अहिंसक चेतना का जागरण। मुझे लगता है इन सबका मूल कारण है- आचार्यप्रवर का पवित्र आभामंडल। आपने अहिंसा संयम आदि की साधना से अपने आभामंडल को इतना पवित्र बना लिया है कि आपको किसी भी कोण से देखे, सर्वत्र पवित्रता ही पवित्रता नजर आती है। आपके पवित्र आभामंडल में प्रस्फुटित होने वाली रश्मियों से चारो ओर शांति व्याप्त हो जाती है और आपके आभामंडल में प्रवेश करते ही व्यक्ति की भावधारा परिणामधारा विशुद्ध हो जाती है। पास में बैठने वाला विशिष्ट प्रसन्नता व आनंद की अनुभूति करता है और अपने आपको साकारात्मक ऊर्जा से सरोबार महसूस करता है।
आपके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर स्वामी निरंजनानंदजी जो स्वयं एक धर्मगुरु होकर भी आपके समक्ष धरती पर बैठ गये, व आपश्री के हाथों को मजबूती से पकड़कर, जबरदस्ती अपने मस्तिष्क पर रखवाकर मानो आशीर्वाद ले लिया। वहीं मूर्तिपूजक आम्नाय के मुनि पुण्यध्यानविजय ने जी अपने वक्तव्य में कहा-
कंकड़ तो बहुत होते हैं, शंकर तो एक ही होते हैं।
श्रमण तो बहुत होते है, महाश्रमण तो एक ही होते हैं।
आचार्यप्रवर की परम पवित्रता के कारण ही हर व्यक्ति के मन में उनके प्रति श्रद्धा व विशेष सम्मान के भाव हैं। आखिर कैसे बना आचार्यश्री महाश्रमण का आभामंडल इतना पवित्र?
पवित्र आभामंडल के कारण - आपकी ऋजुता व कथनी-करनी की सम्मानता विलक्षण है। आपका जीवन खुली किताब की तरह है। लुकाव-छिपाव से आप कोसों दूर हैं। आप अपने प्रण को निभाने के लिए अनेकों कष्टों को स्वीकार करना मंजूर कर लेते हैं, लेकिन प्रण से विचलित नहीं होते। आप अहिंसा, सत्य, संयम व तप के परम उपासक हैं। आपके जीवन में श्रद्धा, भक्ति व ज्ञान का समन्वय है। आप ज्ञान, दर्शन, चारित्र की त्रिवेणी में निरंतर अभिस्नात रहते हैं। आपके आचार की निर्मलता विशिष्ट है। आपके ह्रदय में प्राणीमात्र के प्रति सहानुभूति, करुणा व मैत्री है। आचार्य प्रवर के 50वें दीक्षोत्सव पर हम सभी मंगलकामना करते हैं कि दीर्घकाल तक हमें आपश्री के पवित्र आभामंडल में बैठने का मौका मिलता रहे, व आपके पवित्र आभामंडल से निकलने वाली रश्मियों से हम भी अपने जीवन को पवित्र, पवित्रतर व पवित्रतम बना लें।