पारस्परिक सम्बन्ध और प्रीती को तोड़ने वाला है गुस्सा : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म के सुमेरु आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि हमारे भीतर अनेक वृत्तियां जी रही हैं। उन वृत्तियों के कारण आदमी कभी अच्छे रूप में सामने आता है तो कभी दोषी-अपराधी के रूप में भी सामने आ सकता है। हमारे भीतर में जो वृत्तियां है वे सद्वृत्तियां भी है और असद्वृत्तियां भी हैं। सद्वृत्तियों में शांति-क्षमा का भाव, निरंहकारता, सरलता, संतोष आदि हैं। गुस्सा, अहंकार, माया, लोभ आदि असद्वृत्तियां हो जाती हैं।
गुस्सा मनुष्यों का शत्रु होता है। कभी गुस्सा मन में आता है पर व्यक्ति वाणी और शरीर पर नियंत्रण कर लेता है। कभी गुस्सा मन से वाणी में आ जाता है तो आदमी अनर्गल बोल देता है। गुस्सा जब शरीर पर असर करता है तो व्यक्ति लाल-पीला हो जाता है, प्रहार या मारपीट भी कर देता है। इस प्रकार गुस्सा तीन प्रकार का हो जाता है - मानसिक, वाचिक और कायिक। इस गुस्से को आदमी कम करने का प्रयास करे। शांति-क्षमा भाव में रहने का प्रयास करे। गुस्सा प्रीति का नाश करने वाला होता है। खल और सज्जन के माध्यम से मैत्री की एक स्थिति बताई गयी है कि सूर्य के दो भाग कर लें - पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध। सूर्य के पूर्वार्द्ध की छाया लम्बी होती है, बाद में धीरे-धीरे घटते-घटते बहुत छोटी हो जाती है। खल आदमी भी इसी तरह शुरुआत में तो बड़ा प्रेम दिखाते हैं, फिर धीरे-धीरे उनका स्नेह कम हो जाता है। सज्जन की दोस्ती उत्तरार्द्ध के सूर्य के समान होती है। पहले उसकी छाया छोटी होती है, बाद में बड़ी होती जाती है।
गुस्सा पाप कर्म का बन्ध कराने वाला होता है। मन में क्रोध का भाव आ भी जाए तो उसे वाणी में नहीं लाए। हमारे भीतर सहन करने की क्षमता बढ़े। घर में कलह को स्थान न दें। जहां त्याग है, दूसरों के हित का चिन्तन है, वहां सम्बन्ध अच्छा रह सकता है। हम साधु जो एक गुरु के शिष्य हैं, वो तो भाई-भाई ही हैं। सबमें आपस में सौहार्दपूर्ण व्यवहार रहे, एक दूसरे का सहयोग करें। गुस्सा पारस्परिक सम्बन्ध को तोड़ने वाला है, हम गुस्से को नियंत्रण में रखने का प्रयास करें, गुस्से को कृश और क्षीण करने का प्रयास करें। पूज्यवर के दर्शनार्थ ब्रह्मकुमारी कविता दीदी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। छत्रपति शिवाजी माध्यमिक विद्यालय की ओर से प्रधानाध्यापिका सुनीता आस्मां नाईक, सरपंच प्रदीप नायरे व सुरेश सोलंकी ने पूज्यप्रवर के स्वागत में अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।