अतिलोभ की सीमा कर संतोष को धारण करें : आचार्यश्री महाश्रमण
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी आनंद खेड़े से विहार कर नेर पधारे। विशाल परिषद को पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान कराते हुए महामनीषी ने फरमाया कि प्राणी के भीतर लोभ की वृत्ति होती है। परिग्रह संज्ञा और लोभ संज्ञा होती है। अनेक संज्ञा लोभ की वृत्ति के आधार पर फलने-फूलने वाली होती है। बारहवें गुणस्थान वाला तो पूर्णतया लोभ की वृत्ति से मुक्त हो जाता है। सामान्य प्राणी में लोभ की चेतना होती है। शास्त्रकार ने कहा है कि ज्यों-ज्यों लाभ होता है, त्यों-त्यों लोभ बढ़ता है। पदार्थों की दुनिया में लोभ की वृत्ति हो सकती है। तपस्या में थोड़ा और करने की भावना तो प्रशस्त है। तपस्या तो एक साधना है, तपस्या से समस्या का समाधान भी हो सकता है। लोभ की वृत्ति पर हमें नियंत्रण रखना चाहिये। साधु के तो सर्व परिग्रह विरमण महाव्रत है। ऐसी फकीरी के सामने अमीरी भी प्रणत हो जाती है। गृहस्थ जो संसार में रहने वाले हैं, वे अति लोभ की सीमा करे, संतोष को धारण करें।
साधुत्व की सम्पदा के सामने गृहस्थ की बड़ी से बड़ी सम्पदा मिट्टी की तरह है। आचार्य प्रवर ने आगे फ़रमाया - खान्देश स्तरीय कर्मणा जैन सम्मेलन हो रहा है। कर्मणा जैनों की संभाल होती रहे। सम्पर्क बना रहे तो प्रेरणा जाग सकती है। जैन धर्म के अच्छे संस्कार मिलते रहे, धार्मिक, आध्यात्मिक संयम का विकास होता रहे। पूज्यप्रवर के स्वागत में न्यू इंग्लिश स्कूल की ओर से अध्यापक प्रसाद शिंदे ने अपने विचार व्यक्त किए। स्कूल की छात्राओं ने स्वागत गीत का संगान किया। सम्मेलन के अंतर्गत अरुण पाटिल, प्रह्लाद बोराला, खानदेश क्षेत्र के आंचलिक प्रभारी ऋषभ गेलड़ा, खानदेश सभा के अध्यक्ष नानक तनेजा, अभिमन्यु पाटिल, मिनाक्षी पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। कर्मणा जैन कन्या मण्डल ने गीत का संगान किया। कर्मणा जैन श्रद्धालुओं द्वारा नशामुक्ति आदि के संदर्भ में अनेक प्रस्तुतियां दी गईं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।