सूर्य की तरह दैदीप्यमान हैं आचार्यश्री महाश्रमण

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सूर्य की तरह दैदीप्यमान हैं आचार्यश्री महाश्रमण

अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी का अभिवन्दना समारोह साध्वी डॉ. गवेषणाश्रीजी के सान्निध्य में परमार हाउस में अणुव्रत समिति की आयोजना में आयोजित हुआ। अनुशास्ता की अभिवन्दना में साध्वीश्री ने कहा कि आचार्यश्री स्थितप्रज्ञ की तरह हैं, उन्हें यश की चाह नहीं है। वे किसी भी परिस्थिति में अडिग, अडोल रहते हैं। न नेपाल का भूंकप, न चेरापूंजी की बारिश, न कोरोना महामारी उन्हें डिगा सकी। भीषण गर्मी में भी जन प्रतिबोध के लिए आप सदैव गतिशील हैं।
साध्वीश्री ने कहा कि आपके आभामंडल में आने वाला व्यक्ति अपने आपको तृप्त बना लेता है। आपका ललाट सूर्य की तरह दैदीप्यमान है। साध्वीश्री ने कहा कि उनकी अभिवन्दना के साथ उनके गुणों का जीवन में अवतरण होना ही हमारी सच्ची भावांजलि होगी। साध्वी दक्षप्रभाजी ने अणुव्रत गीत के संगान से मंगलाचरण किया। साध्वी मंयकप्रभाजी ने आचार्य प्रवर की संयम निष्ठा, इन्द्रिय संयम इत्यादि गुणों का विवेचन करते हुए कहा कि संयम से ही साधना के शिखर को प्राप्त किया जा सकता है। किल्पाक तेरापंथ सभा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष अशोक परमार ने कहा कि दृढ़ विश्वास और पूर्ण श्रद्धा के साथ गुरु के प्रति समर्पण भाव से ही सिद्धि प्राप्त होती है। मुख्य वक्ता गौतमचंद सेठिया ने कहा कि आचार्यश्री का जीवन पराक्रम, निरन्तरता, नियमितता, समर्पण, निरहंकारिता से परिपूर्ण है। अणुविभा की राष्ट्रीय उपाध्यक्षा माला कातरेला ने आचार्य की अभिवन्दना में उनके ग्यारह गुणों की व्याख्या की।
कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए अणुव्रत समिति मंत्री स्वरूप चन्द दांती ने अपने विचारों के साथ धन्यवाद ज्ञापन दिया।