मन, वचन, काया व इन्द्रियों पर अनुशासन से साधें आत्मानुशासन : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मन, वचन, काया व इन्द्रियों पर अनुशासन से साधें आत्मानुशासन : आचार्यश्री महाश्रमण

विकास के महासूत्रधार आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महाराष्ट्र की लम्बी यात्रा सम्पन्न कर गुजरात राज्य में पावन प्रवेश कराया। अणुव्रत अनुशास्ता ने पावन पाथेय प्रदान कराते हुए फरमाया कि आत्मानुशासन बहुत महत्वपूर्ण तत्त्व है। शास्त्र में कहा गया है कि श्रेष्ठ यही है कि मैं स्वयं अपनी आत्मा पर दमन-अनुशासन कर लूं। संयम और तप के द्वारा स्वयं ही स्वयं का दमन करूं। यदि मैं स्वयं पर अनुशासन नहीं करूंगा तो दूसरों को जबरन मेरे पर अनुशासन करना पड़ेगा। स्वयं पर स्वयं का अनुशासन कैसे हो? आत्मा पर अनुशासन कैसे हो? आत्मा तो अमूर्त्त है। अमूर्त्त तत्त्व आंखों से देखा नहीं जा सकता। अपने पर अनुशासन करने के लिए अपनी जबान पर अनुशासन कर लें। जबान की लगाम हाथ में रहे। जबान से आदमी झूठ-कटु बात भी बोल सकता है। झूठ, कटु और फालतू बात नहीं बोलना ये तीन बातें सध जाए तो वचनोनुशासन कायम हो सकता है। किसी पर अयथार्थ, झूठा आरोप न लगाएं, अनावश्यक बातें न करें।
हम शरीर को कुछ साधकर उस पर अनुशासन करने का प्रयास करें। शरीर को स्थिर रखने का प्रयास करें, प्रेक्षाध्यान से यह सध सकता है। शरीर से जान-बूझकर किसी को तकलीफ न दें। मन पर भी अनुशासन करने का प्रयास हो। मन में दुर्विचार न आए, सबके प्रति सद्भावना, मंगलभावना रहे। सब प्राणी सुखी रहें, कल्याण की दिशा में सब आगे बढ़ें। विचारों में अध्यात्म की भावना रहे। इन्द्रियों पर भी अनुशासन रहे। बुरा सुनो मत, बुरा देखो मत, बुरा बोलो मत, बुरा सोचो मत और किसी का बुरा करो मत। किसी दुःखी आदमी का दुःख सुनकर कोई धार्मिक-आध्यात्मिक मदद कर दे। कानों से आगम वाणी, कल्याणी वाणी सुनें।
आज गुजरात में प्रवेश हुआ है। पहले गुजरात से ही आए थे। सूरत में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने भी चतुर्मास किया था, वहीं पर हम चतुर्मास करने जा रहे हैं। गुजरात की जनता में भी धार्मिक भावना रहे। हम आत्मानुशासन को साधें। मनोनुशासन, वचनोनुशासन और कायोनुशासन व इन्द्रियानुशासन को हम साध लेते हैं, तो इसकी निष्पत्ति यह होती है, मानो आत्मानुशासन हमारा सध जाता है। हम इन चारों पर अनुशासन रखने का प्रयास करें। यह हमारे मानव जीवन की निष्पत्ति हो सकती है। आगम साहित्य में हमें अनेक बातें मिलती है, जो साधना की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। संयम और तप के द्वारा हम आत्मा का दमन करें, अपनी आत्मा को साधें। इससे हम आत्मा पर अनुशासन साधने में सफल हो सकते हैं। पूज्यवर के स्वागत में पूनम बुरड़ ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।