मलिनता को आलोचन और प्रायश्चित से करें दूर : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मलिनता को आलोचन और प्रायश्चित से करें दूर : आचार्यश्री महाश्रमण

धर्म दिवाकर आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ विसरवाड़ी गांव स्थित सार्वजनिक कला व वाणिज्य महाविद्यालय में पधारे। महाविद्यालय परिसर में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फ़रमाया कि प्रश्न किया गया निर्वाण को कौन प्राप्त कर सकता है? उत्तर दिया गया कि निर्वाण को वह प्राप्त कर सकता है जिसके जीवन में धर्म ठहरता है। दूसरा प्रश्न किया गया कि धर्म किसके जीवन में ठहरता है? उत्तर दिया गया कि धर्म शुद्ध व्यक्ति के ह्रदय में ठहरता है। तीसरा प्रश्न किया गया कि शुद्ध कौन होता है? बताया गया कि जो सरल, ऋजुभूत होता है, उसकी शुद्धि होती है।
ऋजुभूत की शोधि होती है, इस बात को हम प्रायश्चित्त के सन्दर्भ में देखें। किसी साधु से कोई प्रमाद हो गया, मलिनता हो गई। अब उस मेल को उतरना है तो आलोचन, प्रायश्चित्त उसका उपाय हो सकता है। जो सरल होगा वह सम्यक्तया प्रायश्चित्त कर सकेगा। वह कितना अच्छा व्यक्ति है जो स्वयं चलाकर, अपनी गलती बताकर प्रायश्चित्त मांगता है। ऋजुता से बता देना ही मानो अपने आप में शोधि का कुछ काम हो जाता है, फिर प्रायश्चित्त लेकर उसका निर्वहन करने से शेष कार्य भी हो सकता है। हमारे जीवन में ऋजुता और सरलता रहे। झूठ का मार्ग टेढ़ा-मेढ़ा, दाव-पेंच वाला है। झूठ बोलने वाले व्यक्ति के दिमाग में ज्यादा तनाव रह सकता है। सच्चाई, ईमानदारी का रास्ता सीधा-सपाट है। थोड़ी से हानि, बदनामी, कठिनाई से बचने के लिए व्यक्ति झूठ का रास्ता ले लेता है। पर सच्चाई सामने आने के बाद तो ज्यादा कठिनाई हो सकती है। सच्चाई सामने न भी आये तो आत्मा के तो कर्म मल चिपक ही जाते हैं। शुद्धि के लिए प्रायश्चित और प्रतिक्रमण दो उपाय हैं। प्रतिक्रमण करते हुए दूसरा काम या बातें साथ में न हो। प्रतिक्रमण का पाठ अर्थ बोध सहित हो जाए। प्रतिक्रमण उभय काल का और आलोयणा रोज हो जाए तो जीवन में शुद्धि बनी रह सकती है। प्रायश्चित लेने वाले में सरलता हो तो प्रायश्चित प्रदाता में गंभीरता होनी चाहिए। यह डॉक्टर और मरीज का सा सम्बन्ध है। हर साधु-साध्वी यह चिंतन रखे कि अंतिम श्वास आने से पहले-पहले मेरी आलोयणा हो जाए। चतुर्दशी के अवसर पर आचार्यप्रवर के निर्देशानुसार मुनि देवकुमारजी, मुनि खुशकुमारजी व मुनि अर्हम् कुमारजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। उपस्थित चारित्रात्माओं ने लेखपत्र का वाचन किया। महाविद्यालय की प्राचार्य जयश्री गावीत ने पूज्य प्रवर के स्वागत में अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।