सामुदायिक जीवन में भी करें एकत्व का अनुभव : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सामुदायिक जीवन में भी करें एकत्व का अनुभव : आचार्यश्री महाश्रमण

जिन शासक प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि आदमी में समझ शक्ति के साथ सहन शक्ति भी हो तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। समझ शक्ति ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से और सहन शक्ति चारित्रमोहनीय कर्म के क्षय से जुड़ी हुई है। श्रवण शक्ति, दर्शन शक्ति, समझ शक्ति और सहन शक्ति इस प्रकार ये चार चीजें हो जाती हैं। श्रवण शक्ति से व्यक्ति बात को अच्छी तरह सुन लेता है। दर्शन शक्ति से दूर की चीज को भी देखकर पहचान लेता है। श्रवण शक्ति कान से और दर्शन शक्ति आंखों से जुड़ी हुई हैं। श्रवण शक्ति कमजोर होने से थोड़ी कठिनाई हो सकती है, पर दर्शन शक्ति कमजोर होने से अधिक कठिनाई हो सकती है।
शरीर के संदर्भ में अंधा और बहरा होना जीवन में बड़ी कमी हो जाती है। श्रवण और दर्शन शक्ति होने से व्यक्ति बात को समझ शक्ति से अच्छी तरह ग्रहण कर सकता है। समझ लेने पर सहन शक्ति हो तो मन में शांति रह सकती है। हमारे जीवन में सहिष्णुता-क्षमाशीलता का विकास हो। सहज में यदि निर्जरा का मौका मिलता है तो समता भाव से उसका लाभ उठाने का प्रयास होना चाहिए। अकेला जीवन जीना कठिन होता है, तो समुदाय में जीना भी कठिन हो सकता है। समूह में रहते हुए भी कुछ अकेलेपन का अनुभव साधक की पहचान हो सकती है।
शास्त्र में कहा गया कि स्वजन आदि तुम्हें प्राण और शरण देने वाले नहीं हो सकेंगे, तुम भी उनके लिए प्राण और शरण देने वाले नहीं बन सकते हो। सामुदायिक जीवन की अपना महत्ता होती है। उच्च साधना की भूमिका में एकाकी जीवन की अपनी उपयोगिता होती है। कहा गया- ‘नमि तूं एकाकी भलो, दोय मिल्या दु:ख होय’। दो होने से द्वन्द-टकराव हो सकता है। सामुदायिक जीवन में साथ में रहकर भी समाधि में रहें। अनेकता होने पर भी एकत्व में रहें, - ‘अनेकता में एकता, साधक की विशेषता’।
जीव अकेला आया है, अकेला ही जाएगा। व्यक्ति का दृष्टिकोण सम्यक बन जाए तो सहन करना आसान है। कोई तकलीफ दे तो व्यक्ति यह सोचे कि मैं मेरे कर्मों के योग से ही मैं कष्ट में आया हूं, दूसरे तो निमित्त मात्र हैं। अपने विवेक का उपयोग करें, अनावश्यक सख्ती का प्रयोग नहीं करें। जहां पर आवश्यकता है, दायित्व है, वहां कुछ कठोरता का प्रयोग भी किया जा सकता है। व्यक्ति का भीतरी संतुलन बना रहे, यह काम्य है। प्रवास स्थल डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी विद्यालय के मुख्य अध्यापक राजेंद्र क्षीरसागर ने पूज्यवर के स्वागत में अपनी भावना अभिव्यक्ति की। सूरत तेरापंथ महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।