
श्रमण महावीर
'क्या शरीर-धारण के लिए नींद लेना जरूरी नहीं है?'
'है, इसीलिए भगवान चिर जागरण के बाद क्षण-भर नींद ले लेते थे।2
'क्या उन्हें नींद नहीं सताती थी?'
'ग्रीष्म और हेमंत ऋतु के दिनों में कभी-कभी नींद सताने लग जाती। एक बार रात को नींद ने आक्रमण जैसा कर दिया, तव भगवान् ने क्षण-भर नींद ली, फिर ध्यान में आरूढ़ हो गए।
नींद आने के चार कारण माने जाते हैं-थकान, एकाग्रता, शून्यता और शिथिलीकरण। भगवान् एकाग्रता और शिथिलीकरण दोनों की साधना करते, फिर वे नींद के आक्रमण से कैसे बच पाते?
'भगवान् की एकाग्रता और शिथिलीकरण के नीचे आत्मोपलब्धि की तीव्र भावना सक्रिय थी। इसलिए नींद उन्हें सहज ही आक्रान्त नहीं कर पाती।'
'भगवान ने ध्यान से नींद को जीता या उससे नींद की पूर्ति की?'
'भगवान् खड़े-खड़े ध्यान करते थे। कभी-कभी टहल लेते थे। इन साधनों से वे नींद पर विजय पा लेते थे। भगवान् बहुत कम खाते थे। कायोत्सर्ग बहुत करते थे। इसलिए उन्हें सहज ही नींद कम आती थी। सहज समाधि में प्राप्त तृप्ति नींद की आवश्यकता को बहुत ही कम कर देती
थी इसलिए पूर्ति की अपेक्षा नहीं रहती।' 'भगवान् के स्वप्न-दर्शन की कोई घटना ज्ञात नहीं है?'
'नहीं, क्यों?'
'तो मैं जानना चाहता हूं।'
'भगवान् महावीर शूलपाणि यक्ष के चैत्य में ध्यान कर रहे थे। रात के पिछले पहर में (सूर्योदय में मुहूर्त भर बाकी था, उस समय) भगवान् को नींद आ गयी। उसमें उन्होंने दस स्वप्न देखे-'
१. ताल पिशाच पराजित हो गया है।
२. श्वेत पंखवाला बड़ा पुंस्कोकिल।
३. चित्र-विचित्र पंखवाला पुंस्कोकिल ।
४. रत्नमय दो मालाएं।
५. श्वेत गौवर्ग।
६. कुसुमित पद्मसरोवर ।
७. कल्लोलित समुद्र भुजाओं से तीर्ण हो गया है।
८. तेज से प्रज्वलित सूर्य।
9. मानुषोत्तर पर्वत अपनी आतों में आवेष्टित हो गया है।
१०. मेरु पर्वत की चूलिका के सिंहासन पर अपनी उपस्थिति।
- ये स्वप्न देखकर भगवान् प्रतिबुद्ध हो गए?
'संस्कार-दर्शन की घटनाएं क्या ज्ञात हैं?'
ये अनेक बार घटित हुई हैं। शूलपाणि यक्ष की घटना तुम सुन चुके हो। कटपूतना व्यन्तरी और संगम देव की घटना क्या संस्कार-दर्शन की घटना नहीं है?'
साधना का पांचवां वर्ष चालू है। भगवान् ग्रामाक सन्निवेश से शालीशीर्ष आ रहे हैं। उसके बाहर एक उद्यान है। भगवान् उसमें आकर ध्यानस्थ हो गए हैं। माघ का महीना है। भयंकर सर्दी पड़ रही है। ठंडी हवा चल रही है। आकाश कुहासे से भरा हुआ है। सारा वातावरण कांप रहा है। हर प्राणी ऊष्मा और ताप की खोज में है।