यह चातुर्मास ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप को आगे बढ़ाने वाला हो : आचार्यश्री महाश्रमण
अभातेयुप एवं जैन विश्व भारती के संयुक्त निर्देशन में होने वाली सम्यक् दर्शन कार्यशाला के बैनर का पूज्यवर की सन्निधि में हुआ अनावरण
आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी। जिनशासन में यह दिन चतुर्मास की स्थापना का दिन है। आज के दिन प्रायः सभी साधु-साध्वियां एक स्थान पर चार माह के लिए स्थिर हो जाते हैं। चतुर्मास का समय त्याग-तपस्या के साथ धार्मिक-आध्यात्मिक साधना का समय होता है। सूरत में भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के संयम विहार परिसर में आचार्य श्री महाश्रमण जी अपने विशाल साधु-साध्वी समुदाय के साथ सन् 2024 चातुर्मास करने पधारें हैं।
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम् अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महावीर समवसरण में मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि आज आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी है, चतुर्मास लगने वाली चतुर्दशी है। कल का दिन आचार्य भिक्षु का जन्मदिवस था। आचार्य भिक्षु जन्मदिवस त्रयोदशी है, तो महाप्रयाण दिवस भी त्रयोदशी है। आचार्य भिक्षु का जन्म कंटालिया में 298 वर्ष पूर्व हुआ था। विशिष्ट आत्मा से जुड़ा होने से गांव का नाम भी विशिष्ट हो जाता है। आने वाले वर्ष में आचार्य भिक्षु के जन्मदिवस को त्रि-शताब्दी लगने वाली है। आचार्य भिक्षु में ज्ञान का वैशिष्ट्य था, वीर वाणी में उनकी प्रगाढ़ श्रद्धा थी। आगमों का मंथन कर उन्होंने नवनीत निकाला था। ज्ञान के साथ उनकी श्रद्धा भी विशेष थी, आचार भी उनका अपने ढ़ंग का था। तपस्या भी करते थे। दो मुनि थिरपालजी, मुनि फतेहचंदजी की बात को मानकर लोगों को समझाने में उन्होंने पुरुषार्थ किया। जन्म लेना बड़ी बात नहीं है परन्तु जन्म और मरण के बीच का काल महत्वपूर्ण होता है। जिसका जीवन महत्वपूर्ण होता है, उसका जन्म भी महत्वपूर्ण हो जाता है। उसकी मृत्यु का दिवस भी मनाने लायक हो जाता है। सिरियारी का वह स्थान जहां चरम दिवस पर धम्म जागरणा होती है, अन्य स्थलों पर भी धर्म जागरणा होती है। कल बोधि दिवस पर आठ दीक्षाऐं हो गई।
चतुर्मास से पहले आध्यात्मिक मंगल, अष्ट मंगल हो गया। आज चतुर्मासिक चतुर्दशी है, चतुर्मास धार्मिक-आध्यात्मिक साधना का काल है। शेष काल में तो यात्राएं होती हैं। चतुर्मास में स्थिरता हो जाती है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप यह मोक्ष का मार्ग बताया गया है। स्थिरता में ज्ञानाराधना के लिए ज्यादा से ज्यादा समय नियोजित हो। महाप्रज्ञ श्रुताराधना पाठ्यक्रम से गुरुकुलवासी व बहिर्विहारी साधु-साध्वियां गहराई से अध्ययन कर सकते हैं। तत्त्वज्ञान के पाठ्यक्रम से भी कई चारित्रात्माऐं जुड़े हुए हैं। व्याख्यान प्रवचन भी ज्ञानाराधना का माध्यम बन सकता है। गृहस्थों में ज्ञानशाला भी ज्ञानाराधना का माध्यम बन सकती है। मुमुक्षु बाईयां जैन विद्या से भी जुड़ी हुई है। जैन विश्व भारती से तो कितना साहित्य उपलब्ध होता है। जैन विश्व भारती तो साहित्य का भंडार है। लाडनूं के छोटे से भंडार में भी हमारा कितना पुरातन साहित्य भरा पड़ा है। साहित्य स्वाध्याय की शोभा है। चतुर्मास में हमारे ज्ञान का विकास हो।
उपासक श्रेणी आदि की कक्षाएं चलती हैं, वह भी ज्ञानाराधना क्रम है। जयाचार्य द्वारा रचित चौबीसी को कंठस्थ करने का प्रयास करें, प्रतिदिन एक गीत का स्वाध्याय हो जाए। चौबीसी में स्तुति के साथ तत्त्वज्ञान की बातें हैं तो आध्यात्मिक साधना की बात भी है। आगम कार्य से जुड़ी चारित्रात्माएं चतुर्मास में कार्य को आगे बढ़ाने का, आगम कार्य को निष्ठा की तरफ ले जाने का प्रयास करें।
मोक्ष मार्ग में दूसरा अंग है- दर्शन। हमारी सम्यक् श्रद्धा पुष्ट रहे, सम्यक्त्व दीक्षा भी दर्शन का एक अंग बन सकता है। यथार्थ के प्रति हमारी निष्ठा बनी रहे। जो केवली द्वारा प्रवेदित है उसको श्रद्धा
के साथ स्वीकार करें। सम्यक्त्व की पुष्टि के लिए हमारे कषाय मंद हो। बिना आग्रह के तत्त्व बोध, यथार्थ को पकड़ने का प्रयास करें। चारित्रात्माएं चारित्र के प्रति जागरूक रहने का प्रयास रखें। साधु-साध्वियों में तपस्या का क्रम भी चले। गृहस्थ भी तपस्या में थोड़ा-थोड़ा कदम आगे बढ़ाएं। तपस्या में प्रेरणा का प्रभाव पड़ता है। कई मानव अपने ढंग से आगे बढ़ते हैं, और कई-कई को प्रेरणा का आलम्बन आगे बढ़ाता है। यह चातुर्मास ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप को आगे बढ़ाने वाला हो।
समणियां तो धर्म की लक्ष्मियां है, कभी कहीं-कभी कहीं। वे भी अपनी आराधना का क्रम बढ़ाती रहें। मुमुक्षु बहनें भी अपने ढ़ंग से कार्य करती रहें। श्रावक श्राविकाएं भी आराधना करने वाले हैं। भीखमजी नखत तो गजब के व्यक्ति हैं, बारह महीने डेरे से सेवा करने वाले हैं। अधिकांश समय गुरुकुलवास में रहते हैं। अवसर मिलते ही भीखमजी नखत ने पूज्यप्रवर से दीक्षा हेतु प्रार्थना की। पूज्यप्रवर ने फ़रमाया - ''प्रतिक्रमण याद कर लो, परिवार की आज्ञा हो, आपकी खुद की तैयारी हो, तो ना कहने का भाव नहीं है।'' पूज्य प्रवर ने उन्हें साधु प्रतिक्रमण सीखने की आज्ञा प्रदान करते हुए फ़रमाया कि वर्तमान में ये विरल व्यक्ति दिख रहे हैं जो प्रायः सेवा में रहने वाले हैं। कई श्रावक-श्राविका चातुर्मास काल में यहाँ रहकर सेवा करने वाले हैं। सेवा करने वालों को व्यवस्था समिति का भी सहयोग मिल जाता है। चतुर्दशी के उपलक्ष में हाजरी का वाचन कराते हुए पूज्यप्रवर ने चारित्रात्माओं को शिक्षाएं प्रदान करवाई। मुनि ऋषिकुमारजी, मुनि केशीकुमारजी, मुनि प्रिंसकुमारजी एवं मुनि देवकुमारजी के लेख-पत्र के उच्चारण के बाद सभी साधु-साध्वियों ने लेख-पत्र का वाचन किया गया। मुमुक्षु मानवी आंचलिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। आंचलिया परिवार के सदस्यों ने गीतिका का संगान किया। गुजरात के शिक्षा राज्य मंत्री प्रफुल्ल पांशेरिया ने आचार्य श्री के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया एवं अपने विचार भी व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्यश्री राग-द्वेष व कषायों की आग को बुझा रहे हैं, आप श्रेष्ठ योगी हैं। आपको भौतिक पदार्थों से कोई लगाव नहीं है। आप जैसे आचार्यों का इस देश में विचरण हो रहा है, तभी यहाँ शांति है।
मुनि योगेशकुमारजी ने किशोरों एवं युवकों के लिए साप्ताहिक कार्यशाला 'उन्मेष' के बारे में जानकारी दी। उपासक श्रेणी सूरत के सदस्यों द्वारा सुमधुर गीत की प्रस्तुति हुई। अभातेयुप एवं जैन विश्व भारती के संयुक्त निर्देशन में सम्यक् दर्शन कार्यशाला के बैनर का पूज्यवर की सन्निधि में अनावरण हुआ। निलेश बाफना, अर्पित नाहर, निधि सेखाणी, मधु देरासरिया, अमित सेठिया, प्रवीण भाई ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। अभातेयुप के निर्देशन में किशोर मंडल का त्रि-दिवसीय 19 वां राष्ट्रीय अधिवेशन 'सृजन' का शुभारंभ हुआ। महिला मंडल ने पूज्यवर की अभिवन्दना में गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।