अनंत काल की यात्रा में साधु बनना है बड़े भाग्य की बात : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अनंत काल की यात्रा में साधु बनना है बड़े भाग्य की बात : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु के 299वें जन्म एवं 267वें बोधि दिवस के अवसर पर संयम रत्न प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने एक साथ आठ आत्माओं को संयम रत्न प्रदान किया। जिनशासन के महान जैनाचार्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृत देशना में फरमाया कि भगवान महावीर को लोकोत्तम कहा गया है। साधु को भी लोकोत्तम कहा गया है। साधु बनने का अर्थ है लोकोत्तमता की स्थिति को प्राप्त कर लेना। आज आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी है, तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का जन्म दिवस व बोधि दिवस है। आज के दिन दीक्षा समारोह आयोजित हो रहा है। दो समणीजी श्रेणी आरोहण कर रही हैं, दो मुमुक्षु भाई व चार मुमुक्षु बहनें संयम रत्न को प्राप्त करने के लिए उत्सुक है। पूज्यप्रवर ने दीक्षा हेतु मुमुक्षुओं के पारिवारिकजनों से लिखित एवं मौखिक तथा मुमुक्षुओं से मौखिक स्वीकृति प्राप्त की, दोनों समणी जी से भी मौखिक स्वीकृति ली गई।
अतीत की आलोचना :
आचार्य प्रवर ने भगवान महावीर, आचार्य भिक्षु एवं उनकी उत्तरवर्ती आचार्य परम्परा तथा पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का पावन स्मरण करते हुए नमस्कार महामंत्र का उच्चारण कर दीक्षा के लिए उत्सुक समणी जी एवं मुमुक्षु भाई-बहनों को यावज्जीवन के लिए तीन करण-तीन योग से सर्व सावद्य योग का प्रत्याख्यान करवा कर साधु संस्था में सम्मिलित करवाया। पूज्यवर ने नवदीक्षितों को आर्षवाणी से अतीत की आलोचना करवाई।
केश लाेच संस्कार : शिष्य की चोटी गुरु के हाथ :
आचार्य प्रवर ने फरमाया कि केश लोच जैन संस्कार हमारी साधना का, चर्या का अंग है। वर्ष में कम से कम एक लोच संवत्सरी से पहले करवाना ही होता है। पूज्य कालूगणी ने तो
अस्वस्थ अवस्था में भी लोच करवाया था। पूज्यवर ने दोनों नवदीक्षित मुनियों एवं साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने छहों नवदीक्षित साध्वियों का केश लोच किया। अनंत काल की यात्रा में साधु बनना तो बड़े भाग्य की बात है।
आज का दिन भी आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी का है, अगले वर्ष आचार्य भिक्षु का 300वां जन्म दिवस आने वाला है। राजनगर में आचार्य भिक्षु को बुखार का निमित्त मिला और उन्होंने उस अवस्था में संकल्प कर लिया कि मुझे उत्थान करना है। हम में भी ज्ञान बोधि, दर्शन बोधि और चारित्र बोधि का विकास होता रहे।
रजोहरण प्रदान कर दी अहिंसा की साधना की प्रेरणा :
पूज्यवर ने अहिंसा पालन में सहयोगी रजोहरण व प्रमार्जनी दोनों नवदीक्षित मुनियों को आर्ष वाणी के साथ प्रदान करवाते हुए साधना और विकास का आशीर्वाद प्रदान किया। साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने छहों नवदीक्षितों को रजोहरण व प्रमार्जनी प्रदान करवाई।
नामकरण संस्कार:
हमारे जीवन में नाम का भी महत्व है। शुभ नाम होने से दूसरों को भी प्रेरणा मिल सकती है। साधु जीवन में साधुता के अनुरूप नाम हो। आचार्य प्रवर ने नवदीक्षित साधु-साध्वियों को नूतन नाम प्रदान करवाए :
मुमुक्षु विकास बाफना - मुनि वीतराग कुमार
मुमुक्षु सुरेंद्र कोचर - मुनि संयम कुमार
समणी अक्षयप्रज्ञाजी - साध्वी अक्षयविभा
समणी प्रणवप्रज्ञाजी - साध्वी प्रीतिप्रभा
मुमुक्षु मीनाक्षी सामसुखा - साध्वी परागप्रभा
मुमुक्षु मीनल परीख - साध्वी मेधावीप्रभा
मुमुक्षु दीक्षिता संघवी - साध्वी दीक्षितप्रभा
मुमुक्षु नूपुर बरड़िया - साध्वी निश्चयप्रभा
नवदीक्षितों को पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए पूज्य गुरुदेव ने फरमाया कि जीवन में साधुता रहे, हर कार्य में संयम रहे। साधुत्व बहुत बड़ी चीज़ है, इसकी सुरक्षा होती रहे। जीवन के क्षण-क्षण, कण-कण में संयम की चेतना रहे। जीवन में अध्यात्म का विकास निरन्तर होता रहे। आचार्यवर के आदेश से साध्वियों को साध्वीप्रमुखाजी की निश्रा में, मुनि वीतरागकुमारजी को मुनि दिनेशकुमारजी एवं मुनि संयमकुमार को मुख्यमुनि के नैकट्य में मुनि कुमारश्रमणजी के पास शिक्षण प्रशिक्षण के लिए सौंपा गया। पूज्यप्रवर ने फ़रमाया कि आठ दीक्षाएं हुई हैं, मानो अष्ट मंगल हो गया है, आठों कर्मों को भी क्षीण करने की दिशा में आगे बढ़ना है। आठ प्रवचन माताएं भी होती हैं, उनकी साधना-आराधना भी अच्छे ढंग से बढ़ती रहे। गृहस्थ भी त्याग-संयम की दिशा में आगे बढ़ते रहें। नवदीक्षित साधु-साध्वियों ने अपने मनोभाव श्रीचरणों में अभिव्यक्त किये। दीक्षा समारोह से पूर्व डॉ. समणी मंजुप्रज्ञाजी ने दोनों समणीजी का एवं मुमुक्षु रुचिका एवं मुमुक्षु साधना ने छः मुमुक्षुओं का परिचय दिया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था के अध्यक्ष बजरंग जैन ने मुमुक्षुओं के आज्ञा पत्र का वाचन किया। मुमुक्षुओं के अभिभावकों ने आज्ञा पत्र पूज्यवर को समर्पित किये।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने मंगल उद्बोधन में फरमाया कि हम आचार्य भिक्षु का जन्मदिवस व बोधिदिवस मना रहे हैं। ठाणं सूत्र में तीन बोधियां ज्ञान, दर्शन और चारित्र बोधि बताई गई हैं। प्रतिक्रमण में भी हम आरोग्य और बोधि की कामना करते हैं, उत्तराध्ययन में भी बोधि का उल्लेख मिलता है। आचार्य महाप्रज्ञजी फरमाते थे कि बोधि भीतर की ज्ञानात्मक चेतना है। इसके विकास से व्यक्ति हेय, ज्ञेय और उपादेय को समझ सकता है। आचार्य भिक्षु के वैशिष्ट्य का कारण था बोधि। बोधि आन्तरिक अनुभूति से आ सकती है। आचार्य भिक्षु के पास अंतर्दृष्टि थी, जिससे उन्होंने समस्याओं का समाधान किया।
दीक्षा समारोह के सन्दर्भ में साध्वीप्रमुखाश्री ने कहा कि आत्मा के विकास के लिए हमने दीक्षा को स्वीकार किया है। तेरापंथ की दीक्षा समर्पण की दीक्षा है। तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षा लेने वाले, मोती बनने वालों का जीवन निखर जाता है। नव दीक्षित साधु-साध्वियों का जीवन तेजस्वी बने, सब आचार्य प्रवर की दृष्टि की आराधना करते हुए आगे बढ़ते रहें। मुनि उदितकुमारजी ने तपस्या की प्रेरणा देते हुए अपने विचार व्यक्त किए। मीमांसा पटवा के मुमुक्षु रूप में साधना करने के निवेदन को पूज्य प्रवर ने स्वीकृति प्रदान की। ललीता कुमठ ने पूज्यप्रवर से 33 की तपस्या के प्रत्याख्यान किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।