चातुर्मास है अंतरात्मा में प्रस्थान का समय

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चातुर्मास है अंतरात्मा में प्रस्थान का समय

तेरापंथ भवन में आयोजित त्रिदिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन चातुर्मासिक चतुर्दशी के अवसर पर उपस्थित धर्म परिषद् को सम्बोधित करते हुए साध्वी डॉ. मंगलप्रज्ञा जी ने कहा- हर व्यक्ति शान्ति चाहता है, तनाव और अशान्ति किसी को पसन्द नहीं है। अपने भीतर जाना शान्ति का पैगाम है, तनाव मुक्ति का पैगाम है। भीतर की प्रेरणाा जागती है तब व्यक्ति अंतर्मुखी बनने की कोशिश करता है। चातुर्मास का समय अध्यात्म साधना का सर्वोत्तम समय है। अध्यात्म भावना पुष्ट करने के लिए संत परिवार प्रेरणा देते हैं। अध्यात्म की साधना के लिए भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव अनुकूल होने चाहिए।
चातुर्मास में प्रवेश का अर्थ है अन्तर्मुखता बढ़ने की भावना पुष्ट हो। चातुर्मास का समय अहंकार, कषाय को प्रतनु बनाने के लिए उपयोगी है। साध्वीश्री ने उपस्थित श्रावक-श्राविका परिवार को त्याग, संयम की विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए रात्रि भोजन, सचित्त द्रव्य का प्रत्याख्यान करवाया। साध्वीश्री की प्रेरणा से सतरंगी तप का प्रारंभ भी हुआ। सज्जन बम्ब ने मंगलाचारण का संगान किया। अर्हम् फाउंडेशन के मंत्री प्यारचन्द मेहता, प्रेक्षा प्राध्यापिका विमला दुगड़ व अल्का पटावरी ने अपने उद्गार प्रस्तुत किए। मलाड तेरापंथ महिला मण्डल मंत्री मीना बाफणा ने भावों की प्रस्तुति दी। साध्वी सुदर्शनप्रभाजी, साध्वी राजुलप्रभाजी और साध्वी चैतन्यप्रभाजी ने चातुर्मास में जागरण की प्रेरणा देते हुए समूह स्वर संगान किया।
साध्वी डॉ. मंगलप्रज्ञाजी द्वारा चतुर्दशी के अवसर पर मर्यादा का वाचन करते हुए कहा कि मर्यादा, अनुशासन, आज्ञा हमारा प्राण है। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें एक गुरू परम्परा युक्त तेरापंथ संघ मिला है। साध्वीश्री ने चातुर्मास में मौन पचरंगी, सामायिक पचरंगी, जप अनुष्ठान आदि करने की प्रेरणा दी। कार्यक्रम का संचालन साध्वी सुदर्शनप्रभाजी ने किया।