आचार्य भिक्षु का जन्म है एक धर्मक्रान्ति
पीतमपुरा। साध्वी अणिमाश्रीजी के सान्निध्य में खिलौनी देवी धर्मशाला में आचार्य भिक्षु का जन्म दिवस एवं बोधि-दिवस श्रावक समाज की विशाल उपस्थिति में मनाया गया। साध्वीश्री ने अपने आराध्य को श्रद्धाः सुमन अर्पित करते हुए कहा- तेरापंथ के तेजस्वी दिनकर का नाम है- आचार्य भिक्षु। अनुशासन व मर्यादा के शिखर पुरूष हैं- आचार्य भिक्षु। आचार्य भिक्षु का जन्म धर्मक्रांति का जन्म है। आचार्य भिक्षु का जन्म सत्य, संयम, तप व त्याग-तपोबल का जन्म है। आचार्य भिक्षु का जन्म आचारनिष्ठा व शुद्ध साध्वाचार का जन्म है। सिंह स्वप्न के साथ मॉं दीपा की रत्नकुक्षि से जन्म लेकर जीवन भर शेर की तरह दहाड़ते रहे। डॉ. साध्वी सुधाप्रभाजी ने बोधि-दिवस पर आपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु का जन्म बोधि का जन्म है। राजनगर के श्रावकों को समझाते हुए उन्होंने आगमों का पारायण किया। आगम रूपी महासागर में अवगाहन करने पर उन्हें बोधि रूपी मोती प्राप्त हुए। उसी बोधि की निष्पत्ति है- हमारा यह गौरवशाली तेरापंथ। साध्वी कर्णिकाश्रीजी व साध्वी मैत्रीप्रभाजी ने गीत एवं वक्तव्य के द्वारा भावांजलि अर्पित की। साध्वी समत्वयशाजी ने मंच का कुशल संचालन किया। पीतमपुरा सभा के मंत्री विरेन्द्र जैन ने अपने विचार व्यक्त किए। त्रिनगर सभा के भाई-बहनों ने सुमधुर व सरस शैली में मंगल संगान किया। भिक्षु भक्त मंडल ने जोशीले स्वरों में भिक्षु भक्ति में स्वरांजलि अर्पित की।