संस्कारों के धन से धनवान बने किशोर : आचार्यश्री महाश्रमण
तेरापंथ अधिनायक युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने महावीर समवसरण में अमृत वर्षा कराते हुए फरमाया कि हमें मनुष्य जन्म संप्राप्त है। पांच इंद्रियों वाला शरीर प्राप्त होना और उसमें भी मनुष्य जीवन मिलना, यह एक विशेष बात है। पंचेंद्रिय तो तिर्यंच, असंज्ञी मनुष्य, देव और नारक भी होते हैं पर संज्ञी मनुष्य का जीवन मिलना अपने आप में विशेष उपलब्धि मानी जा सकती है।मनुष्य जीवन में आयुष्य कभी लंबा भी होता है, तो कभी छोटा भी होता है। अवसर्पिणी के छः अर और उत्सर्पिणी के छः अर हैं। तीन पल्योपम की तुलना में वर्तमान का आयुष्य स्वल्प है। वर्तमान में तो किसी को 200 वर्ष भी नहीं आ रहे हैं। हमारे धर्मसंघ में साध्वी बिदामांजी 100 वर्ष पार के हैं। अधिकतर लोग तो 100 के अंदर-अंदर ही परभव पथगामी बन जाते हैं। भविष्य में तो आयुष्य बीस वर्ष, सोलह वर्ष तक का भी हो सकता है।
इस मानव जीवन में वृद्धावस्था भी आ सकती है तो तारूण्य भी आ सकता है। वृद्धावस्था कम लोगों को, तारूण्य उससे अधिक को, किशोर और बाल्यावस्था और अधिक लोगों को प्राप्त होती है। किशोरों का अधिवेशन हो रहा है, विभिन्न क्षेत्रों से किशोरों की समागति सूरत में हुई है। किशोर एक बहुत महत्वपूर्ण अवस्था होती है। चूंकि यह नई पौध है, इसे अच्छे निमित्त मिल जाए और उपादान हो तो यह बहुत विकसित हो सकती है, सुकार्यकारी बन सकती है। किशोर स्वयं, परिवार, समाज, देश और विश्व के लिए कुछ योगदान देने वाले बन सकते हैं। अच्छा पथदर्शन मिले, अच्छी सहायक सामग्री उपलब्ध हो जाए तो किशोर पीढ़ी का अच्छा विकास हो सकता है, उनमें अच्छे संस्कार आ सकते हैं।
किशोरों में ज्ञान का विकास हो, भाषाओं का ज्ञान हो, अन्य विषयों का ज्ञान भी हो। कोई डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, न्यायाधीश भी बन सकते हैं। कोई राजनीति में जा कर लोकसभा, राज्यसभा, विधायक, मंत्री या उच्च पद पर आ सकते हैं। आज जो किशोर हैं, वे हीं कभी राजनीति में उच्च पदों पर, धर्म नीति के क्षेत्र में अच्छे स्थानों पर अथवा सामाजिक क्षेत्र में उच्च स्थानों पर सेवा देने वाले बन सकते हैं। किशोर कभी युवा और प्रौढ़ बन सकते हैं पर प्रौढ़ कभी वापस किशोर नहीं बन सकते। प्रौढ़ व्यक्तियों के आचरणों में बालत्व आ सकता है पर अवस्था में नहीं। वार्धक्य में आदमी थोड़ा बच्चे जैसा बन सकता है। छोटा बच्चा अपने पिता का, बड़े का हाथ पकड़ कर चलता है, वृद्ध भी किसी का हाथ पकड़ कर चलते हैं। छोटे बच्चे और वृद्ध दोनों को सहारे की आवश्यकता होती है। पहले मां-बाप बच्चे की सेवा करते हैं, उनके वृद्ध होने पर बच्चे भी मां-बाप की सेवा करते हैं।
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के तत्वावधान में बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण उपक्रम है किशोरों को संभालना। किशोर मंडल से जुड़ जाने से किशोरों के गलत रास्ते पर जाने से बचाव की संभावना बन जाती है। स्कूली शिक्षा के साथ अच्छे धार्मिक संस्कार मिल जाते हैं तो अच्छी संपदा उनके पास हो सकती है। किशोर संस्कारों के धन से धनवान बनें। किशोर नशा मुक्त रहें, ड्रग्स फ्री रहें। सोशियल मीडिया आदि का अवांछनीय, अहितकर प्रयोग करने से बचें, उपकरणों का संयम करें, डिजिटल डिटॉक्स का प्रयास करें।
सामान्यतया, सूर्योदय होने से पहले-पहले निद्रा मुक्त हो जाएं। अमृत वेला में धार्मिक पाठ करें तो अच्छी मानसिकता बन सकती है। नवकार मंत्र का 21 बार पाठ का संकल्प बन जाए, गुरुओं का भी स्मरण किया जाए। किशोर जीवन से ही बढ़िया जीवन शैली बन जाए। दिनचर्या का प्रारंभ और समापन दोनों समय पवित्र स्मरण हो जाए। ज्ञानशाला का अध्ययन होने के बाद जैन विद्या का अध्ययन भी कर सकते हैं। संतों के संपर्क में आने से भी उनको अच्छी प्रेरणा मिल सकती है। यह सम्मेलन किशोरों को संस्कार और सद्ज्ञान देने वाला सिद्ध हो सकता है। पूज्य प्रवर के मंगल प्रवचन के पश्चात किशोर मंडल के राष्ट्रीय सह प्रभारी ऋषि दुगड़ ने 19वें राष्ट्रीय किशोर मंडल अधिवेशन 'सृजन' के थीम सॉन्ग की प्रस्तुति दी। राष्ट्रीय प्रभारी अरविंद पोखरणा, सह प्रभारी वैभव नाहटा, अधिवेशन संयोजक कुलदीप कोठारी ने अपने विचार व्यक्त किए। किशोर मंडल सदस्यों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। किशोर मंडल की ओर से नौ संकल्पों की माला पूज्य चरणों में समर्पित की गई। अधिवेशन के मंचीय कार्यक्रम का संचालन अभातेयुप महामंत्री अमित नाहटा ने किया।