त्याग जैन धर्म की आत्मा है

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त्याग जैन धर्म की आत्मा है

जलगांव। त्याग जैन धर्म की आत्मा है, यह स्वागत समारोह मेरा नहीं है - यह त्याग और तपस्या का, गुरुदृष्टि का अभिनंदन है। धर्मसंघ आदेश, अनुशासन, मर्यादा पर टिका हुआ है, गुरु आज्ञा सर्वोपरि है। धर्म की लौ जगाने का समय है - चातुर्मास। इस दौरान सभी को अध्यात्म के साथ-साथ धर्म आराधना कर धार्मिक संस्कार जागृत करने का प्रयास करना चाहिए। जप, तप, त्याग और संयम से जीवन की बगिया को सुगंधित करें। यह समय पाप से मुक्ति और आत्म-जागरण की दिशा में आगे बढ़ने का है। साध्वी प्रबलयशाजी ने चातुर्मासिक मंगल प्रवेश समारोह में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें अपने अंदर से क्रोध, मान, माया और लोभ को दूर कर आत्मा को उज्ज्वल बनाना चाहिए। साध्वी सौरभप्रभाजी एवं साध्वी सुयशप्रभाजी ने तप को चातुर्मासिक सफलता की कुंजी बताते हुए कहानियों एवं सुंदर गीतों के माध्यम से चातुर्मास का महत्व बताया। कार्यक्रम की शुरूआत साध्वीश्री द्वारा नमस्कार महामंत्र उच्चारण से हुई। मंगलाचरण नम्रता सेठिया ने किया। तेरापंथ महिला मंडल, भिक्षु भजन मंडली ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। साध्वीश्री का परिचय राजकुमार सेठिया एवं राजेश धाडेवा ने दिया। कार्यक्रम का संचालन ठाकरमल सेठिया तथा आभार सुनील बैद ने व्यक्त किया।