भक्तामर आध्यात्मिक अनुष्ठान का आयोजन

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भक्तामर आध्यात्मिक अनुष्ठान का आयोजन

युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या ‘शासनश्री’ साध्वी कमलप्रभा जी के सान्निध्य में तेरापंथ सभा भवन में भक्तामर अनुष्ठान का आयोजन किया गया। इस अनुष्ठान में 29 दंपत्तियों के अतिरिक्त अनेक श्रावक-श्राविकाओं, कन्या मंडल, ज्ञानशाला ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया। लाल चुनरी ओढ़े बहनों एवं श्वेत परिधान में भाइयों की स्वास्तिकार पंक्ति सबके लिए विशेष आकर्षण रही। साध्वी वृंद ने भक्तामर का लयबद्ध उच्चारण करते हुए सबको उसके अर्थ से भी अवगत कराया।
साध्वी कमलप्रभा जी ने भक्तामर स्तोत्र की रचना से जुड़े हुए इतिहास की जानकारी देते हुए कहा 11वीं शताब्दी में मानतुंगसूरी द्वारा विरचित भगवान आदिनाथ की यह स्तवना आज भी पूरे जैन समाज के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इसके माध्यम से आज चिकित्सा पद्धतियां भी चल रही है। मानतुंग आचार्य ने जैन शासन की प्रभावना की स्थिति को सम्मुख रखकर इस स्तोत्र की रचना की थी। इसके प्रभाव से 48 ताले अपने आप टूट गए, जिनमें मानतुंग सूरी को कैद कर रखा था। इस चमत्कार को देख तत्कालीन राजा हर्ष देव जैन धर्म अनुरागी बन गए। साध्वी वृंद ने इस अवसर पर मधुर गीत का भी संगान किया।