शक्ति होने पर भी वार नहीं करना महावीरता है : आचार्यश्री महाश्रमण
अष्टगणी सम्पदा से सुशोभित, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आर्षवाणी की व्याख्या कराते हुए फरमाया कि आयारो आगम के प्रथम अध्ययन में अहिंसा के संदर्भ में कहा गया है- अहिंसा का मार्ग एक महान मार्ग है। दो मार्ग है- हिंसा और अहिंसा। हिंसा से दुःख प्रसूत होते हैं। अहिंसा के मार्ग पर चलने से दूसरों को दुःख नहीं होता और स्वयं को भी शांति मिलती है। अहिंसा के मार्ग पर हर कोई समर्पित नहीं होता। जो पराक्रमशाली वीर होते हैं, वे इस पथ पर समर्पित होते हैं। हिंसा में भी कुछ वीरता की बात हो सकती है। युद्ध में जो लड़ता है, उसमें वीरता होती है, उससे भी बड़ी वीरता अहिंसा में होती है। जिसके पास शक्ति है, लब्धि है, पर वह लब्धि का प्रयोग नहीं करता, यह सबसे ऊंची वीरता है। कायर तो समरांगण में ही जाने से डरता है। शक्ति होने पर भी वार नहीं करना महावीरता हो जाती है।
भय से भी व्यक्ति हिंसा कर लेता है। वीर पुरुष इस महान विधि अहिंसा के प्रति समर्पित होते हैं। अहिंसा में निर्भयता चाहिए। आदमी सामर्थ्यवान होने पर भी न मारे, ‘मार सके मारे नहीं, ताको नाम मर्द।’ हमारे व्यवहार में अहिंसा की नीति हो। हमारे देश में भी अहिंसा की नीति हो कि हम चलाकर किसी पर आक्रमण नहीं करेंगे। लोकतंत्र की दो प्रणालियां हैं- लोकतंत्र और राजतंत्र। प्रणाली भले दो हो पर उसमें अहिंसा का भाव हो। सामान्य आदमी राष्ट्र का राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री बन सकता है, इसमें भी समानता है। अहिंसा-समता की भावना इसमें है। न्याय देने में देरी हो जाए, पर अन्याय किसी के साथ न हो जाए। कितने धर्म और जाति के लोग आपस में साथ रहते हैं, इसमें अहिंसा झलकती है। साध्य महत्वपूर्ण है पर उसके साधन में भी अहिंसा हो। पूज्यवर ने अगस्त माह में चलने वाले सपाद कोटि जप के अनुष्ठान का पावन शुभारम्भ करवाया। ऊपर के व्याख्यान में पूज्यवर ने आचार्य श्री तुलसी द्वारा रचित 'चन्दन की चुटकी भली' से ‘नीति रो प्यालो’ आख्यान को विस्तार से समझाया।
तेरापंथ किशोर मंडल एवं तेरापंथ कन्या
मंडल ने चौबीसी का संगान किया। पूज्यवर ने तपस्याओं के प्रत्याख्यान करवाये। स्नेहलता चोरड़िया ने 14 की तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यवर से ग्रहण किये। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।