हिंसा नरक का द्वार, श्रवण से ज्ञान प्राप्त कर बनें अहिंसक : आचार्यश्री महाश्रमण
अहिंसा का संबोध प्रदान करने वाला युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना देते हुए फरमाया कि आदमी को सुनने से संबोधि प्राप्त हो सकती है। प्राचीन काल में हो सकता है कि ज्ञान का एक बड़ा माध्यम सुनना था पर आज की स्थिति में बदलाव आया है। प्राचीन काल में सुनने के लिए किसी के समक्ष उपस्थित रहकर सुनना पड़ता था, परंतु आज तो हजारों कोस दूर बैठे भी तत्काल प्रवचन सुना जा सकता है। इसके अलावा आज के युग में इतना साहित्य उपलब्ध है कि पढ़कर भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
आयारो आगम में कहा गया है कि तीर्थंकर के पास कोई सुन ले या अनगार साधुओं के पास कोई उनकी कल्याणी वाणी सुनले तो हिंसा के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है। प्रवचन को सुनने अथवा बातचीत के माध्यम से ज्ञान अर्जन हो सकता है। बातचीत के माध्यम से जिज्ञासाओं का समाधान कर व्यक्ति को श्रद्धालु बनाया जा सकता है। एक वक्ता की वाणी, जो कल्याणी हो, उससे कितनों को ज्ञान मिल सकता है। हिंसा का परिणाम खराब आने वाला है, आदमी जब यह जान जाता है तो उसके के मन में यह भाव जाग सकता है कि मुझे ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे हिंसा हो।
आयारो आगम में हिंसा के दुष्परिणाम बताए गए हैं। हिंसा चित्त को व्यथित करने वाली है, हिंसा करने वाला अपनी आत्मा को बंधन में डाल सकता है। कर्मबंधन से उसका परिणाम भोगना पड़ता है। मोहनीय कर्म के उदय के बिना आदमी हिंसा नहीं कर सकता। मोहनीय कर्म के उदय से ही आदमी हिंसा में प्रवृत्त होता है। हिंसा के होने में अतीत के मोहनीय कर्म का बंध, वर्तमान में हिंसा होना और फिर पुनः भविष्य के लिए कर्म बंध कर लेता है। हिंसा तो मानो मृत्यु ही है, नरक के समान है। हिंसा नरक का द्वार है, यह जानकारी या इस प्रकार की जानकारी साधु अथवा अर्हत की वाणी से प्राप्त होती है तो आदमी यह सोच सकता है कि मैं हिंसा से अपना बचाव करूं। इस प्रकार तीर्थंकरों अथवा साधु की वाणी से कितनों को संबोध मिल सकता है।
आयारो आगम के पावन प्रवचन के पश्चात युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने उपस्थित श्रावक समाज को पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी द्वारा रचित 'चंदन की चुटकी भली' पुस्तक में वर्णित चक्रवर्ती सनत्कुमार के आख्यान को समाप्त किया। मंगल प्रवचन के पश्चात प्रेक्षाध्यान की संस्थाओं के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमण जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। प्रेक्षा इंटरनेशनल के अध्यक्ष अरविंद संचेती, अध्यात्म साधना केंद्र से के. सी. जैन, प्रेक्षा फाउंडेशन चेयरमैन अशोक चिंडालिया, भेरूलाल चोपड़ा ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।