265वें तेरापंथ स्थापना दिवस पर विविध आयोजन
मुनि जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में तथा तेरापंथ सभा साउथ हावड़ा के तत्वावधान में 265 वां तेरापंथ स्थापना दिवस व गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम हर्षोल्लास के साथ प्रेक्षा विहार में मनाया गया। इस अवसर पर मुनिश्री ने कहा भारतीय सस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोपरि है। अज्ञान रूपी अंधकार का जो नाश करते है उन्हें गुरु कहते हैं। गुरु जीवन दाता, भाग्य विधाता, संयम दाता, समकित दाता व त्राता होते हैं। गुरु को पारसमणि की उपमा से उपमित किया गया है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा गया है। गुरु की महिमा अपरंपार होती है। निष्काम, निस्वार्थ भाव से जो धर्म का मार्ग बताते हैं वे ही वास्तव में सच्चे गुरु होते हैं। जिसके जीवन में गुरु नहीं होते है उनका जीवन शुरु नही होता है।
मुनिश्री ने आगे कहा गुरु पूर्णिमा के दिन ही केलवा की अंधेरी में आचार्य भिक्षु ने भाव दीक्षा ग्रहण कर तेरापंथ की स्थापना की। उनके जीवन में अनेक संघर्ष आए। वे कष्टों की परवाह न करते हुए वे साधना व सत्य के मार्ग- पर चलते रहे। आचार्य भिक्षु ऊर्जा संपन्न गुरु थे। तेरापंथ के उद्भव में उनकी पापभीरुता अभय,व जागरुकता निमित्त बनी। उन्होंने नवीन संघ का समुचित संरक्षण करने के लिए तीन काम, विशेष रूप से किए- मूल्यों की स्थापना, संघ संगठन, साहित्य सृजन। मुनि परमानंद जी ने कहा- आचार्य भिक्षु साधना के शिखर पुरुष थे। मुनि कुणालकुमार जी ने मधुर गीत का संगान किया। आभार मंत्री बसंत पटावरी ने व संचालन मुनि परमानंद जी ने किया। वर्षावास स्थापना अनुष्ठान मुनि परमानंद जी ने करवाया