आचार्य श्री भिक्षु के 299वें जन्म दिवस एवं 267वें बोधि दिवस पर विविध आयोजन
आचार्य श्री भिक्षु यदि जर्मनी में जन्म लेते तो कांट से अधिक प्रसिद्ध होते- साध्वी उर्मिलाकुमारी जी बोधि ज्ञानात्मक शक्ति होती है, यह आंतरिक ज्ञान होता है, महामना आचार्यश्री भिक्षु ने अपने अंतरज्ञान के प्रकाश से प्रज्ञा को जागृत किया। भीतरी ध्यान रश्मियों के प्रकाश से बोधि को जागृत किया, आंतरिक प्रज्ञा के आधार पर आपने दुनिया को अनुशासन के जो सूत्र दिए वो अद्भुत हैं। उपरोक्त विचार साध्वी उर्मिलाकुमारीजी ने तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम गुरु महामना आचार्य श्री भिक्षु के 299 वें जन्मोत्सव और 267 वें बोधि दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में तेरापंथ भवन में व्यक्त किए।
आपने मानवीय चेतना के तीन स्तर मन, बुद्धि और प्रज्ञा का विश्लेषण करते हुए कहा कि मन का काम है चिंतन, स्मृति और कल्पना करना। बुद्धि विवेक और निर्णय करती है और प्रज्ञा के द्वारा आत्मसाक्षात्कार और अनुभूति की जा सकती है। मन से ज्यादा दुर्लभ बुद्धि का विकास और बुद्धि से ज्यादा दुर्लभ प्रज्ञा का विकास है। इस अवसर पर साध्वी मृदुलयशाजी ने कहा कि महापुरुषों का जन्म बड़ी सादगी और त्याग तपस्या के साथ मनाया जाता है। आचार्य भिक्षु सत्य की कसौटी पर कसे हुए ऐसे महापुरुष थे, जिनके जीवन में कथनी-करनी की समानता थी। युगपुरुष वह होता है जो युग के स्रोत के विपरीत गति करते हुए सुविधावाद के मार्ग को छोड़कर स्वयं साधना कर युग को नया मार्गदर्शन देते हैं। उन्होंने उस युग में जिन मर्यादाओं का निर्माण किया वे आज भी बहुत उपयोगी हैं। कार्यक्रम का प्रारम्भ साध्वीवृंद के नमस्कार महामंत्रोच्चार से हुआ। इस अवसर पर साध्वी ऋतुयशाजी व साध्वी ज्ञानयशाजी ने युगल गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन साध्वी ऋतुयशा जी ने किया।