आत्मिक वैभव पाने का सुंदर अवसर है चातुर्मास
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की विदुषी सुशिष्या साध्वी कनकरेखा जी के सान्निध्य में त्रिदिवसीय कार्यक्रम अखंड जप व तेले की तपस्या के साथ प्रारंभ हुआ। आचार्य भिक्षु जन्मोत्सव कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वी गुणप्रेक्षाजी, साध्वी संवरविभाजी व साध्वी हेमंतप्रभाजी के सुमधुर मंगलाचरण से हुआ। साध्वी कनकरेखाजी ने अपने वक्तव्य में कहा- आचार्य भिक्षु विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। जिनके बाह्य व्यक्तित्व से अधिक आकर्षक था आन्तरिक व्यक्तित्व। मर्यादा पुरूषोत्तम आचार्य भिक्षु का लक्ष्य था सत्य को पाना। वे सत्य के लिए जीए, सत्य ही उनकी अंतिम मंजिल बनी, साधना के पथ पर निरंतर गतिशील रहे। इस बीच आने वाली हर मुसीबतों को हंसते-हंसते सहन किया। तेरापंथ धर्मसंध के इतिहास में भिक्षु के अतुल पुरूषार्थ की अकथ कहानी स्वर्णाक्षरों में अंकित है। साध्वी गुणप्रेक्षाजी ने संयोजकीय वक्तव्य के साथ ऐतिहासिक घटना प्रसंग की चर्चा की। स्नेहा बरमेचा ने गीत प्रस्तुत किया।
चातुर्मासिक चतुर्दशी पर साध्वी कनकरेखाजी ने कहा- आत्मिक वैभव पाने का सुंदर अवसर है चातुर्मास। बहिर्यात्रा से अन्तर्यात्रा की ओर प्रस्थान करने का राजपथ है- चातुर्मास। हम भोग से त्याग की ओर, राग से विराग की ओर प्रस्थान कर आत्मा को पवित्र एवं निर्मल बनाएं। ज्ञान, दर्शन, चरित्र की आराधना के साथ जप-तप की साधना करें। हाजरी वाचन के पश्चात् साध्वीवृन्द ने चातुर्मासिक करणीय कार्यों की सुमधुर गीतिका से परिषद् को भाव-विभोर कर दिया।
265 वां तेरापंथ स्थापना दिवस का भव्य कार्यक्रम का शुभारंभ युवती बहनों के सुमधुर मंगलाचरण से हुआ। साध्वी कनकरेखाजी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा- आज तेरापंथ का स्थापना दिवस, सत्य की स्थापना का दिन है, अहिंसा की स्थापना का दिन है। तेरापंथ धर्मसंघ को प्रथम गुरू मिले। गुरू हमारे जीवन के पथदर्शक हैं। वर्तमान में एक गुरु के नेतृत्व में तेरापंथ धर्मसंघ मानव धर्म के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त कर रहा है। आज गुरुपूर्णिमा का दिन सभी धर्मों में गुरू का महत्त्व बताया गया है। साध्वी संवरविभाजी ने अपने विचार रखे, साध्वी गुणप्रेक्षाजी व साध्वी हेमंतप्रभाजी ने गीत की प्रस्तुति दी।