265वें तेरापंथ स्थापना दिवस पर विविध आयोजन

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265वें तेरापंथ स्थापना दिवस पर विविध आयोजन

मुनि प्रशांतकुमारजी ने 265वें तेरापंथ स्थापना दिवस कार्यक्रम में कहा- लगभग ढाई सौ वर्ष पूर्व राजस्थान की धरती पर एक धर्मक्रांति हुई थी, जिसके महानायक थे आचार्य भिक्षु। शुद्ध आचार और शुद्ध विचार को साधुचर्या में संस्थापित करने के पवित्र उद्देश्य से आचार्य भिक्षु ने धर्मक्रांति की थी। आचार्य भिक्षु ने भगवान महावीर के सिद्धांतों को युग के अनुरूप प्रस्तुत किया। दुनिया को सम्यक्त्व का बोध दिया। हमारे जीवन में आचार्य भिक्षु का बहुत उपकार है। पद, नाम से कर्म निर्जरा नहीं होती है। कर्म निर्जरा त्याग-प्रत्याख्यान धर्म-साधना से ही होती है। संस्थाएं सेवा का माध्यम बनें, अहंकार का कारण न बनें। धर्म का रास्ता विनय का रास्ता है, सेवा भावना धर्म में सहायक बनती है। हमारे जीवन में जैनत्व के संस्कार होने चाहिए। त्याग-तप से श्रावक धर्म की अनुपालना सम्यक् रूप से होती है। चातुर्मास धर्म आराधना करने का, जीवन के भाग्योदय का समय है। मुनि कुमुदकुमारजी ने कहा - आचार्य भिक्षु महान सत्यशोधक आचार्य थे। उनके द्वारा संस्थापित तेरापंथ धर्मसंघ में अहंकार और ममकार का कोई स्थान नहीं है। तेरापंथ संघ में श्रद्धा, समर्पण और विनय की महान परम्परा रही है। धर्मसंघ में एक से एक प्रतापी आचार्य हुए, जिन्होंने संघ की श्रीवृद्धि की। श्रावक-श्राविकाओं ने धर्मसंघ में अभूतपूर्व योगदान दिया। गुरु हमारे जीवन के आधार हैं। भारतीय संस्कृति में गुरु का गौरवशाली स्थान है। देव, गुरु, धर्म में हमारे विकास का प्रतिबिम्ब होता है। हम गुरु के प्रति पूर्ण समर्पित रहते हुए विनय, श्रद्धा को सम्यक् रूप से परिपक्व बनायें।