संयम के पथ पर वही आगे बढ़ सकता है जिसका मुमुक्षा भाव प्रबल हो

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संयम के पथ पर वही आगे बढ़ सकता है जिसका मुमुक्षा भाव प्रबल हो

पेटलावद। संयम ही जीवन है, इस आदर्श वाक्य को सामने रखने वाला ही संयमी बन सकता है। जिसका मुमुक्षा भाव प्रबल हो, जिसमें आराध्य वीतराग भगवान के प्रति अटूट आस्था, गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण हो, ऐसा व्यक्ति संयम के पथ पर आगे बढ़ सकता है। उक्त आशय क़े उद्गार साध्वी उर्मिलाकुमारी जी ने प्रेक्षा पटवा के पारमार्थिक शिक्षण संस्था में प्रवेश से पूर्व समाजजनों द्वारा आयोजित मंगल भावना समारोह में व्यक्त किए। साध्वीश्री ने आगे कहा कि संकल्प बल से सम्पन्न व्यक्ति को मार्ग की कठिनाइयां कभी डिगा नहीं सकती। एक वर्ष का दीक्षित संयमी मुनि उस सुख का अनुभव करता है जो सुख देवताओं और चक्रवर्ती को भी उपलब्ध नहीं होता है। इसके लिए आवश्यक है मन का अनुशासन, भावनाओं की पवित्रता और चिंतन की विधायकता। इस अवसर पर साध्वी मृदुलयशाजी ने पारमार्थिक शिक्षण संस्था के 75 वर्षों के इतिहास का उल्लेख करते हुए चतुर्मास मे करणीय उपवास की बारी जप, तप आदि धर्म आराधना करने की प्रेरणा प्रदान की।