आचार्य भिक्षु शक्तिधर, ज्योतिर्धर और महान श्रुतधर आचार्य थे
'शासनगौरव' साध्वी कनकश्रीजी के सान्निध्य में तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु का जन्मदिवस, बोधि दिवस, चातुर्मासिक चतुर्दशी एवं 265वां तेरापंथ स्थापना दिवस आदि सभी कार्यक्रम आध्यात्मिक गुलदस्ते की भांति सोल्लास मनाए गए। तेरापंथी सभा जयपुर द्वारा विधाधर नगर सभा भवन में बहुश्रुत परिषद् की सम्मान्य सदस्या साध्वीश्री ने धर्मक्रांति के सूत्रधार आचार्य भिक्षु को श्रद्वाप्रणति करते हुए कहा- आचार्य भिक्षु पूर्व जन्मों की तप साधना का प्रखर तेज लेकर आए थे। वे अलौकिक तेज पुंज थे। उन्होंने जीवन भर सत्य ज्योति की, आत्म ज्योति की आराधना की। वे ज्योति बन कर जिए और लोक चेतना को सत्य की ज्योति का विरल उपहार देकर गए।
साध्वीश्री ने स्वामीजी की ज्योतिर्मय जीवन यात्रा के प्रेरक प्रसंगों की प्रस्तुति देते हुए कहा- आचार्य भिक्षु जैसी विरल आध्यात्मिक विभूति का जिस गांव और जिस परिवार में अवतरण होता है, वह भी इतिहास में स्वर्णक्षरों से अभिमंडित हो जाता है। इस अवसर पर साध्वी मधुलताजी एवं साध्वी संस्कृतिप्रभा जी ने भी अपनी आस्थासिक्त भवनाएं प्रस्तुत की। साध्वीवृंद ने भावपूर्णगीत को समवेत स्वरों में प्रस्तुति की। साध्वी समितिप्रभा जी ने काव्य के माध्यम से भाव सुमन समर्पित किये।
चातुमासिर्क चतुर्दशी को हाजरी का वाचन कर साध्वीश्री ने वर्षायोग-अध्यात्म के नये प्रयोग विषय पर प्रवचन करते हुए कहा- भारतीय संस्कृति त्याग, संयम और अध्यात्म की संस्कृति है। चतुर्मास धर्माराधना का सुनहरा अवसर है। परम पूज्य आचार्य प्रवर के असीम अनुग्रह से जिस क्षेत्र को चतुर्मास में साधु-साध्वियों का सान्निध्य मिलता है, वह सौभाग्यशाली होता है। अपेक्षा है हम धर्म को प्रायोगिक रूप दें, नये-नये प्रयोगों द्वारा चैतन्य-विकास की दिशा में विशेष उपलब्धि करें।
साध्वी मधुलताजी ने केन्द्र द्वारा निर्दिष्ट चातुर्मासिक साधना आराधना के नियमों की व्याख्या करते हुए समाज को ज्ञानाराधना के साथ-साथ तप-त्याग की बलवती प्रेरणा दी। साध्वीवृंद ने प्रेरक गीत प्रस्तुत किया। स्थानीय शेखावाटी भवन के सभागार में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं ने तप-मंगल स्वरूप उपवास का प्रत्याख्यान किया।
265वां तेरापंथ स्थापना दिवस का बुहु आयामी कार्यक्रम स्थानीय शेखावाटी भवन के विशाल सभागार में आयोजित हुआ। तेरापंथ महिला मंडल सी स्कीम की युवतियों ने मंगल संगान किया। साध्वी मधुलेखाजी के संक्षिप्त वक्तव्य के पश्चात 'शासनगौरव' साध्वी कनकश्रीजी ने आचार्यश्री भिक्षु को श्रद्वाप्रणति करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु शक्तिधर, ज्योतिर्धर और महान श्रुतधर आचार्य थे। वे सत्य के खोजी, अहिंसा के प्रखर चिंतक और प्रयोक्ता थे। उनकी तप साधना, आगम मंथन और आध्यात्मिक अनुभूतियों से निकला नवनीत है तेरापंथ। साध्वीश्री ने आगे कहा- हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें गुरू पूर्णिमा के दिन आचार्य भिक्षु जैसे परमार्थी प्रज्ञापुरूष गुरू मिले। गुरू प्रकाशपुंज होते हैं और शिष्यों के अंतस्तल को दिव्य ज्ञान के आलोक से आलोकित कर देते हैं। वर्तमान में आचार्यश्री महाश्रमण अपने परम पुरूषार्थ से विश्व चेतना को जगा रहे हैं।
गुरू पूर्णिमा के संदर्भ में साध्वीश्री द्वारा नवरचित गीत 'जोत जलाई बोधि की जोत जलाई' साध्वी वृंद द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस अवसर पर कई भाई-बहनों ने जप अनुष्ठान पूर्वक तेला तप किया। साध्वी श्री ने उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को सम्यक्त्व दीक्षा प्रदान की। त्रिदिवसीय कार्यक्रमों का सफल संचालन साध्वी मधुलताजी ने किया।