पर्युषण महापर्व का आगाज

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पर्युषण महापर्व का आगाज

राजलदेसर
खाद्य संयम दिवस : डॉ0 साध्वी परमयशा जी ने पर्युषण महापर्व पर कहा कि हमारा सौभाग्य है कि हमें यह जिनशासन मिला। खाद्य संयम के संदर्भ में साध्वीश्री जी ने कहा कि स्वास्थ्य अनमोल धन है। पहला सुख निरोगी काया के लिए आवश्यक हैक्यों, क्या, कब, कहाँ, कैसे और कितना खाना चाहिए? साध्वी मुक्‍ताप्रभा जी ने कहा कि मैत्री भाव की प्रेरणा देने वाला अनुष्ठान हैपर्युषण। साध्वी विनम्रयशा जी ने आहार संयम को स्वास्थ्य का आधार बताया। साध्वी डॉ0 परमयशा जी, साध्वी धर्मयशा जी, साध्वी विनम्रयशा जी, साध्वी मुक्‍ताप्रभा जी, साध्वी कुमुदप्रभा जी ने गीत की प्रस्तुति दी।
स्वाध्याय दिवस : पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन स्वाध्याय दिवस पर डॉ0 साध्वी परमयशा जी ने स्वाध्याय को मस्तिष्क का अध्ययन बताते हुए कहा कि ब्रेन पावर को बढ़ाने का शक्‍तिशाली आयाम हैस्वाध्याय। स्वाध्याय से आत्मा की निर्ग्रन्थ पर्याय प्रकट होती है। स्वाध्याय के द्वारा ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है। व्यक्‍ति केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी बन सकता है।
साध्वी कुमुदप्रभा जी ने स्वाध्याय दिवस पर कहा कि स्वाध्याय प्रकाशकर है, उससे वह रोशनी मिलती है जो करणीय और अकरणीय का स्पष्ट ज्ञान कराता है। स्वाध्याय एक प्रायश्‍चित है। इससे कर्मों की निर्जरा होती है।
इस अवसर पर साध्वी साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया। इस अवसर पर तेरापंथी सभा, तेममं, तेयुप, कन्या मंडल एवं ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों सहित बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएँ उपस्थित थे।
सामायिक दिवस : तीसरे दिन सामायिक दिवस मनाया गया। इस अवसर पर अभिनव सामायिक कराते हुए डॉ0 साध्वी परमयशा जी ने कहा कि अभिनव सामायिक अध्यात्म की प्रयोगशाला है। श्रावक की साधना हेतु सामायिक एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। सामायिक समता का अभ्यास देती है। यह तेजस्विता, तपस्विता बढ़ाने का उपक्रम है। बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने अभिनव सामायिक की।
वाणी संयम दिवस : वाणी संयम दिवस के बारे में डॉ0 साध्वी परमयशा जी ने कहा कि वाणी को वीणा बनाएँ बाण नहीं। वाणी से फूल बरसाएँ अंगारे नहीं। ऐसे बोलें कि दूसरों का दिल आग-आग नहीं बाग-बाग हो जाए। उन्होंने आगे कहाबोलना बड़ी बात नहीं है परंतु क्या, कैसे, कब, बोलना है उसका विवेक होना जरूरी है। पहले सोचें, फिर बोलें। हमारी वाणी में विष और अमृत दोनों हैं। व्यक्‍ति बोलने की कला सीख जाएँ तो शांति स्थापित हो सकती है। वाणी का संयम मनुष्य को अनेक समस्याओं से बचा सकता है।
साध्वी धर्मयशा जी ने वाणी संयम दिवस पर कहा कि वाणी हमारे हृदय का दर्पण है। मोन के वृक्ष पर ही शांति के फल लगते हैं। वाणी की शक्‍ति है मौन। साध्वीवृंद ने गीत का सुमधुर संगान किया।
अणुव्रत चेतना दिवस : पर्युषण पर्व के पाँचवें दिन नैतिक मूल्यों का अभियान ‘अणुव्रत चेतना दिवस’ के बारे में डॉ0 साध्वी परमयशा जी ने कहा कि अणुव्रत का अर्थ है छोटे-छोटे नियम। साध्वीश्री जी ने आगे कहा कि अणुव्रत प्रवर्तक आचार्यश्री तुलसी ने स्वस्थ समाज संरचना के लिए अणुव्रत आंदोलन की शुरुआत की।
साध्वी कुमुदप्रभा जी ने पर्युषण महापर्व का मंगलाचरण गीत की मधुर स्वर लहरियों के साथ किया। साध्वी विनम्रयशा जी एवं साध्वी मुक्‍ताप्रभा जी ने गीत, कविता के माध्यम से जनता को छोटे-छोटे संकल्प ग्रहण करने का आह्वान किया। उपासक राजेश जैन ने अणुव्रत दिवस पर अपने विचार व्यक्‍त किए।
जप दिवस : जप दिवस के बारे डॉ0 साध्वी परमयशा जी ने कहा कि जप ऊर्जा का अचिन्त्य पावर हाउस है। मंत्र की शक्‍ति आत्मा की शक्‍ति को जगाकर चेतना को ऊर्ध्वमुखी बनाती है। मंत्र जप के प्रकंपन हमारी चेतना एवं वातावरण के शुद्धि का कार्य करते हैं। इस अवसर पर साध्वीश्री जी ने ग्यारह गणधरों पर विस्तार से वर्णन किया। साध्वी मुक्‍ताप्रभा जी ने जप कहाँ करें, कैसे करें पर अपनी बात को विस्तार से बताया। निष्काम भाव से जप करें, प्रमोद भाव के लिए जप करें।
ध्यान दिवस : ध्यान दिवस के बारे में डॉ0 साध्वी परमयशा जी ने कहा कि ध्यान की पद्धति भारतीय परंपरा में प्राचीन काल से रही है और ध्यान को धर्म का प्राण बीज कहा गया है। प्रेक्षाध्यान उसी परंपरा का पुनरुद्धारक है। साध्वी मुक्‍ताप्रभा जी ने ध्यान दिवस के बारे में कहा कि जब मन में विचार आते हैं तो मन अशांत हो जाता है। ध्यान के द्वारा हम मन को शांत बना सकते हैं। ध्यान को ऊर्जा स्तोत्र कहा गया है।
संवत्सरी महापर्व : संवत्सरी महापर्व की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए साध्वीश्री जी ने कहासंवत्सरी महापर्व कहता है बाहर से भीतर की यात्रा करें। यह महान बनने का आह्वान करता है। यह पर्व ॠजुता और मृदुता का पर्व है। यह दिन अपने आपको टटोलने का दिन है।
क्षमापना दिवस : साध्वी डॉ0 परमयशा जी के सान्‍निध्य में ‘पवित्रता का प्रसाद - क्षमापना पर्व’ के अवसर पर सामुहिक खमतखामणा का कार्यक्रम आयोजित हुआ। नमस्कार महामंत्र से शुरू हुए कार्यक्रम में साध्वीश्री जी ने दिल की गाँठें खोलकर एकदम हल्का और पवित्र होने की प्रेरणा देते हुए गुरुदेव आचार्यश्री महाश्रमण जी, साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी सहित चतुर्विध धर्मसंघ से खमतखामणा की।
इस अवसर पर साध्वी धर्मयशा जी ने गीतिका के माध्यम से क्षमापना पर अपनी भावाभिव्यक्‍ति प्रस्तुत की एवं साध्वी विनम्रयशा जी ने अब तक हुई तपस्याओं का विवरण प्रस्तुत किया। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष नवरत्नमल बैद, तेरापंथ महिला मंडल, तेयुप के पदाधिकारियों ने सभी से क्षमायाचना की। कार्यक्रम के पश्‍चात सामुहिक पारणे का कार्यक्रम रखा गया। चारों तरफ खमतखामणा की गूँज थी।