अपनी आत्मा को दुरात्मा बनने से बचाएँ : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अपनी आत्मा को दुरात्मा बनने से बचाएँ : आचार्यश्री महाश्रमण

नामली, 25 जून, 2021

तेरापंथ के राम आचार्यश्री महाश्रमण जी रतलाम को तृप्त कर और अधिक प्यास बढ़ाकर भीलवाड़ा के लिए प्रस्थित हो गए हैं। महामानव ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि चार शब्द हैंपरमात्मा, महात्मा, सदात्मा, दुरात्मा। इन चारों शब्दों में आत्मा तो है ही। एक आत्मा के आगे परम लगा है, दूसरे के आगे महा, तीसरे के आगे सद् लगा है। चौथे शब्द में आत्मा से पूर्व दुर् उपसर्ग लगा है।
आत्मा के चार प्रकार हो जाते हैं। सबसे उच्च कोटि का तो है, परमात्मा। मोक्ष में गई आत्माएँ परम आत्माएँ हैं। केवलज्ञानी आत्मा को किसी अपेक्षा से परमात्मा मान ले। सिद्ध आठों कर्मों से युक्‍त, केवलज्ञानी चार धाती कर्मों से मुक्‍त है। दूसरा हैमहान आत्मा यानी साधु-संत लोग। महात्मा बनना भी ऊँची बात है। पूरी दुनिया में हमेशा साधु करोड़ों की संख्या में विद्यमान रहते हैं।
हमारे धर्मसंघ को 261 वर्ष पूरे होने वाले हैं। तेरापंथ धर्मसंघ में इतने समय से साधु परंपरा अविछिन्‍न चल रही है। अनंतकाल से दुनिया में साधु परंपरा चल रही है और अनंतकाल तक साधु रहेंगे। जो महाव्रती है, वे महात्मा हैं। जिसके मन, वचन और काया में एकता होती है, वह महात्मा होता है। छल-कपट में रहने वाला महात्मा है, नहीं।
तीसरा शब्द हैसदात्मा। महात्मा न भी बन सको पर सदात्मा तो बनो। गार्हस्थ्य में भी सज्जन रूप में रहो। दुर्जन मत बनो। हिंसा-झूठ आदि जघन्य काम मत करो। सज्जन आदमी सदात्मा है। चौथा शब्द हैदुरात्मा। जिसके मन में कुछ है, वाणी में कुछ है, मन, वचन, काय में एकता नहीं है, वह दुरात्मा दुर्जन है।
दुर्जन और सज्जन के लक्षण एक संस्कृत श्‍लोक में बताए गए हैंतीन संदर्भों में दुर्जन और सज्जन की भेद-रेखा खींची गई है। पहली बात हैविद्या। दुर्जन के पास विद्या है तो वह विवाद करता है। सज्जन के पास विद्या है, वो ज्ञान को और बढ़ाने वाली होती है।
दूसरी बात हैधन। एक दुर्जन के पास धन आ गया है तो वह धन का अहंकार करेगा। सज्जन के पास धन है, तो वह दान करेगा। यह दो द‍ृष्टांतों से समझाया। मूँह का जवाब नहीं हाथ का जवाब दें।


रहिमन वे नर मर चूके,
जो कहीं मांगन जाय।
उनसे पहले वे मरे,
जिण मुख निकसत नांय॥
तीसरा संदर्भ हैशक्‍ति। दुर्जन के पास शक्‍ति है, हट्टा-कट्टा है, तो वह दूसरों को दु:ख देने में शक्‍ति काम लेता है। सज्जन आदमी में ताकत है, दूसरे सेवा में काम लेता है। गृहस्थों मे दो प्रकार के आदमी हो सकते हैंदुर्जन आदमी और सज्जन आदमी।
शास्त्रकार ने बात कही है कि जो नुकसान अहित गला काट देने वाला दुश्मन ही नहीं करता वो नुकसान हमारी दुरात्मा बनी आत्मा कर देती है। गला काटने वाला हमारा एक जीवन खत्म कर सकता है। पर हमारी आत्मा जो शत्रु है, वो ऐसा नुकसान कर देती है, कई जन्मों में तकलीफ पानी पड़ सकती है।
जो दुरात्मा है, पाप-हिंसा, हत्या, धोखाधड़ी आदि-आदि करने वाला है, वह जब मृत्यु आती है, तब सोचता है, अरे! मैंने सुना तो है कि नरक गति होती है। देव गति होती है। मैंने तो पाप बहुत किए हैं, अब मेरा क्या होगा? मौत तो सामने खड़ी है। अब मुझे नरक में जाना पड़ा तो। जो सदाचरणों से शून्य है, मृत्यु के निकट आने पर पश्‍चात्ताप करता है। अब मेरा क्या होगा?
ये पश्‍चात्ताप हमें न करना पड़े, इसके लिए हम आत्मा को शत्रु न बनने दें। हम अपनी आत्मा को दुरात्मा न बनने दें।
गृहस्थ में रहने वाले व्यापार-धंधा करने वाले यह ध्यान दें कि जहाँ तक हो सके ईमानदारी को रखें। अनैतिक काम, बेईमानी, ठगी नहीं करना। मन साफ रहना चाहिए।
अर्थाजन साफ-सुथरा रहे तो आत्मा को दुरात्मा बनने से बचाया जा सकता है। ज्यादा गुस्सा न करें। ज्यादा गुस्सा कहीं काम का नहीं है। आत्मा का नुकसान हो सकता है। जीवन में संयम रहे। धर्म-ध्यान करें, तो आदमी दुरात्मा होने से बच सकता है। हमारी दुरात्मा बनी हमारी आत्मा जितना बड़ा नुकसान कर सकती है, उतना बड़ा नुकसान कोई शत्रु भी नहीं कर सकता। आत्मा कभी दुरात्मा या दुर्जन न बने यह ध्यान रखने की बात है।
आज नामली आए हैं, यहाँ भी जैन परिवार है, सबमें धार्मिकता बनी रहे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।