लावण्यश्रीजी प्रौढ़ और विदुषी साध्वी थी
साध्वी लावण्यश्रीजी एक प्रौढ़ और विदुषी साध्वी थी। उन्होंने परम पूज्य गुरूदेव श्री तुलसी के करकमलों से दीक्षा ग्रहण की। वे आगम मनीषी बहुश्रुत परिषद के सदस्य मुनिश्री दुलहराजजी स्वामी की नातीली थी। उन्होंने लंबे समय तक साध्वीश्री सोहनांजी छापर की तन्मयता से सेवा की। उनके घुटनों में दर्द रहता था फिर भी उनकी भावना को साकार करने के लिए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने कर्णाटक, तमिलनाडु की यात्रा की स्वीकृति प्रदान करवाई और उन्होंने दोनों प्रांतों में यात्रा कर अपने नातीले परिचितों की अच्छी सार-संभाल की। इस बार भी अपनी सहयोगी साध्वी दर्शितप्रभाजी की जन्म स्थली पर चतुर्मास के लिए पहुंच गई। परंतु आयुष्य का कोई पता नहीं चलता। चलते-फिरते धर्मसंघ की प्रभावना करते-करते अंतिम श्वास लिया। उन्होंने अपना संयम जीवन सफल और सार्थक किया। उनके प्रति मंगल कामना करें कि उनकी आत्मा उत्तरोत्तर विकास करती हुई चरम लक्ष्य को प्राप्त करें।