अरति की निवृत्ति करने वाला हो सकता है मेधावी : आचार्यश्री महाश्रमण
श्रुत का ज्ञान दिलाने वाले युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि मेधावी के पास प्रतिभा, ग्रहण शक्ति, धारण शक्ति होती है। ऐसे व्यक्ति पुरुषार्थ करते हैं, तो वे ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते है। ज्ञान चेतना को आवृत्त करना ज्ञानावरणीय कर्म है। ज्ञानवरणीय स्वयं पाप कर्म है, पर आत्मा के पाप लगाना यह ज्ञानावरणीय कर्म नहीं करता। ज्ञानवरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, तो ज्ञान चेतना अनावृत्त हो जाती है। ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम सभी संसारी प्राणियों में होता है। क्षयोपशम से आदमी अतीन्द्रिय ज्ञानी भी बन सकता है। ज्ञानवरणीय कर्म का सीधा संबंध ज्ञान के साथ है, आचार के साथ नहीं।
चातुर्मास का समय है, चारित्रात्माएं एवं समणियां स्वाध्याय में समय का नियोजन करें। आगम का स्वाध्याय साधु की खुराक है, इससे संयम को पोषण मिलता है। गुरुदेव तुलसी तो खड़े-खड़े स्वाध्याय करते थे। ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से नए-नए तत्वों की जानकारी मिल सकती है, नई बात सामने आ सकती है, प्रज्ञा व औत्पत्तिकी बुद्धि का विकास हो सकता है। जो अरति की निवृत्ति करता है वह मेधावी हो सकता है। साधु के संयम के प्रति उत्साह बना रहे। आज चतुर्दशी हाजरी का दिन है, चतुर्दशी धार्मिक तिथि के रूप में प्रतिष्ठित रहे। हमारा मेधावीत्व पुष्ट रहे।
संयम व महाव्रतों के प्रति सजगता बनी रहे। हम संयम रूपी हीरे के पहरेदार बने रहें। मोहनीय कर्म कहीं आस-पास आकर इस हीरे का अपहरण न कर ले। रत्नाधिक चारित्रात्माएं छोटी चारित्रात्माओं को प्रेरणा प्रदान करती रहे। पूज्ययवर ने हाजरी वाचन कराते हुए प्रेरणा प्रदान करवाई। लेख पत्र का वाचन नवदीक्षित मुनि वीतराग कुमार जी एवं मुनि संयमकुमार जी ने किया।
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा श्रेष्ठ इंसान बनने की महत्वपूर्ण चीज है- मैं मन की शांति को प्राप्त करूं। इससे मन की स्वस्थता रह सकती है। जीवन में अशांति, तनाव अनेक प्रकार से हो सकता है। धन से दवा, किताब, बड़ा घर या अन्य कोई चीज प्राप्त की जा सकती है पर स्वास्थ्य, ज्ञान, आराम या शांति नहीं मिल सकती। जिसने अपनी इच्छाओं का त्याग कर दिया है वह शांति को प्राप्त कर सकता है। कषाय अशांति का कारण है हम कषाय मुक्ति की ओर आगे बढ़ने का प्रयास करें। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।