मनुष्य जन्म ही मोक्ष का द्वार है : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म साधना के महासूर्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी की अमीवर्षा करते हुए फरमाया कि आयारो आगम के दूसरे अध्ययन में बताया गया है कि हमारे जीवन में एक-एक क्षण का महत्व है। मनुष्य का जीवन अपने आप में एक अच्छा अवसर होता है। चौरासी लाख जीव योनियों में मानव जीवन को श्रेष्ठ बताया गया है क्योंकि मोक्ष की प्राप्ति मनुष्य जीवन से ही हो सकती है। अनुत्तर विमान के देव भी सीधे मोक्ष नहीं जा सकते हैं, उन्हें भी मानव जीवन लेना पड़ता है। वे तो सिद्ध लोक के नजदीक रहते हैं पर मनुष्य जन्म ही मोक्ष का द्वार है, दूसरा कोई द्वार नहीं है।
मानव जीवन अपने आप में एक अवसर है। मानव जीवन में संयम को भी ग्रहण किया जा सकता है। व्यक्ति युवावस्था में संयम जीवन के लिए उद्यत हो जाता है और लंबा संयम जीवन चले तो बहुत बड़ी बात हो जाती है। हमारे अनेक आचार्य एवं साधु-साध्वी बचपन में ही दीक्षित हो गए थे। चारित्रात्माओं में सबसे कम उम्र में दीक्षित होने वाली महासती गुलाबां जी थी, वे तो एक कीर्तिमान हैं। हमारा जीवन संयम विहार है। यहां सूरत में तपोविहार भी चल रहा है, कितने-कितने लोग तपस्या का प्रत्याख्यान कर रहे हैं। कितने लोग उपासना में समय लगा रहे हैं। व्यवस्था करने वालों का भी उन्हें सहयोग मिल जाता है तो सेवा करने में सुविधा हो जाती है। चातुर्मास भी एक क्षण है, इसका सेवा-साधना से लाभ उठाना अच्छी बात हो सकती है।
एक चातुर्मास में इतनी चारित्रात्माओं की उपस्थिति होना विशेष बात है। शरीर जब तक सक्षम है, धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा कर लेनी चाहिए। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की जितनी अनुकूलता हो, इस क्षण का लाभ उठा लेना चाहिए। कहा गया है- हे पंडित! तुम समझदार हो, समय का मूल्यांकन कर उसे सार्थक बनाने का प्रयास करो। धर्म साधना के लिए समय निकाल लेना विशेष बात होती है। शनिवार की सामायिक का भी महत्व है। प्रवचन सुन लेना और सामायिक कर लेना भी क्षण को सार्थक बना लेना होता है। भगवान महावीर और आचार्य श्री भिक्षु में अनेक समानताएं हैं। पाणिग्रहण हुआ, संतान हुई, युवावस्था में दीक्षा ली, जीवन के आठवें दशक में महाप्रयाण को प्राप्त हो गए, जन्म का दिन भी शुक्ला त्रयोदशी है। उन्होंने संयम विहार में उद्यत होकर संयम साधना में जीवन लगा दिया। हम सभी क्षण का धार्मिक आध्यात्मिक लाभ उठाने का प्रयास करें।
राज्यसभा सांसद गोविंद भाई ढोलकिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। महासभा द्वारा अनेक प्रतिभाओं को पुरस्कार सम्मान से सम्मानित किया गया। महासभा अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। सुरेश कुमार जी गोयल को तेरापंथ संघ सेवा सम्मान, लक्ष्मीलाल बाफना को आचार्य तुलसी समाज सेवा पुरस्कार, सुरेंद्र पटावरी को तेरापंथ विशिष्ट प्रतिभा पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार प्राप्त कर्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। आचार्य प्रवर ने आशीर्वचन देते हुए फरमाया कि सभाएं अपने-अपने क्षेत्रों में खूब धार्मिक-आध्यात्मिक कार्य संपादित करने का प्रयास करती रहें। इस जीवन में आत्म उत्थान के लिए जो कर सकें, करने का प्रयास हो। जितना हो सके दूसरों की सेवा और तेरापंथ धर्मसंघ की सेवा देने का प्रयास होता रहे। आज सम्मानित व पुरस्कृत तीनों व्यक्ति अच्छा पुरुषार्थ करते रहें, धार्मिक-आध्यात्मिक विकास का प्रयास करते रहें। तेरापंथी महासभा समाज की अद्वितीय संस्था है, वह अपने ढंग से धार्मिक-आध्यात्मिक कार्य को आगे बढ़ाती रहे।
महासभा के अध्यक्ष मनसुखलाल सेठिया ने श्रेष्ठ उपसभा भिलोड़ा, उत्तम वीरपुर-बिहार व माणगांव-महाराष्ट्र, विशिष्ट उपसभा एसडी कोटे-कर्नाटक व प्रान्तीय-गुजरात को चुना गया। सभाओं की तीन श्रेणियों में लघु के अंतर्गत श्रेष्ठ इचलकरंजी, उत्तम रेलमगरा व विशिष्ट शालिमारबाग व धुलाबाड़ी, मध्यम में श्रेष्ठ सभा भुज, उत्तम गुलाबबाग व विशिष्ट राजाजीनगर-बेंगलुरु व बृहद् सभाओं में श्रेष्ठ सभा गुवाहाटी, उत्तम कांकरिया-मणिनगर व विशिष्ट सभा कांदिवली-मुम्बई के नामों की घोषणा की। चयनित सभी सभा व उपसभाओं को पुरस्कृत किया गया। इस कार्यक्रम का संचालन महासभा के उपाध्यक्ष श्री संजय खटेड़ ने किया।