वीतराग पथ ही हमें त्राण और शरण दे सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वीतराग पथ ही हमें त्राण और शरण दे सकता है : आचार्यश्री महाश्रमण

भारत गणराज्य का 78वां स्वतंत्रता दिवस। जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा का त्री दिवसीय प्रतिनिधि सम्मेलन का आयोजन। कर्मों की गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले परम पावन परम पुरुष आचार्य श्री महाश्रमण जी ने फरमाया की आयारो आगम में कहा गया है आगम में ऐसी बातें प्राप्त होती हैं जिन पर मनन करने से वैराग्य प्राप्त हो सकता है। आदमी वृद्धावस्था को प्राप्त करता है। कई वृद्ध सम्मान को प्राप्त करते हैं, कई सम्मान को प्राप्त नहीं भी करते हैं। वृद्धाश्रम में वृद्धों को रखने के दो पक्ष हैं- परिवार वालों से उनकी सेवा नहीं की जाती है, सेवा करने से छुटकारा पाने का उपाय होता है। कोई वृद्ध अपनी संतानों के पास नहीं रहना चाहते हैं तो संतान उन्हें उनकी सेवा के लिए वृद्धाश्रम का प्रयोग करती है।
हमारे धर्मसंघ में जैन विश्व भारती में चित्त समाधि केंद्र हो, वहां वृद्धों को चित्त समाधि मिल सकती है। वहां धार्मिक साधना का भी मौका मिल सकता है। परिवार वाले भी चिंतन मुक्त हो सकते हैं। धार्मिक स्थान का उपयोग वृद्ध-अवृद्ध को भी मिलता रहे। चित्त समाधि केंद्र सन्यास आश्रम जैसा रूप बन सकता है। महासभा और जैन विश्व भारती भी इस पर चिंतन कर रही है। वृद्धावस्था में कहीं-कहीं परिवार से पूरा सम्मान न मिले तो मन में असमाधि हो सकती है। इसके लिए चित्त समाधि केंद्र में रहकर सन्यास आश्रम सा जीवन बिता सकते हैं। हमारे यहां साध्वियों के लिए एक चित्त समाधि केंद्र बीदासर में है।
कहा गया है कि तुम्हारे मित्र और पारिवारिक जन तुम्हें त्राण और शरण नहीं दे सकते। तुम भी अपने स्वजनों को त्राण और शरण नहीं दे सकते। सेवा दे सकते हैं, पर बुढ़ापे से नहीं बचा सकते। मौत से कौन बचा सकेगा? यह अत्राणता है, अशरणता है। कोई किसी का त्राण और शरण नहीं है, यह निश्चय नय की बात है। व्यवहार में त्राण और शरण हो सकती है, एक-दूसरे की सेवा हो, एक दूसरे के त्राण और शरण बन सकते हैं। दुर्घटना हो जाती है, व्यक्ति चला जाता है, तब कोई किसी को नहीं बचा सकता। ऐसी अवस्था में धर्म करें, अध्यात्म की शरण में आएं। वीतराग पथ ही हमें त्राण और शरण दे सकता है।
स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में पूज्य प्रवर ने फरमाया कि 15 अगस्त 1947 का दिन भारत के लिए एक गौरव का दिन है। भारत स्वतंत्रता में जी रहा है, स्वतंत्रता में जीना अपना आनंद होता है। भारत के पास संत संपदा है, यह संपदा भारतीय की निधि है। संतों से सदुपदेश मिलता है तो आत्म कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। स्वतंत्र होने पर भी संविधान की परतंत्रता और अनुशासन रहना चाहिए। संविधान का पालन होता है तो संविधान सुरक्षित रह सकता है।
भारत में शांति रहे, राजनीति में भी नैतिकता रहे। अणुव्रत के नियमों से भी शांति रह सकती है। अहिंसा और नैतिकता के साथ समीक्षा भी होती रहे। भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है, यह स्वतंत्रता होना भी अच्छी बात है। बाल पीढ़ी में अच्छे संस्कार आएं, युवा पीढ़ी नशा मुक्त रहे। वृद्धों के अनुभव का भी अच्छा उपयोग हो सकता है। साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने फरमाया कि आज जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा का प्रतिनिधि सम्मेलन होने जा रहा है। महासभा प्रगति कर रही है, स्वयं में लगा हुआ व्यक्ति निष्पत्ति ला सकता है।
अग्रिम पंक्ति में बैठे रहने वाला व्यक्ति स्वयं पुरुषार्थ करता रहे तो संस्था आगे बढ़ सकती है। महासभा सारे कार्य समीक्षा पूर्वक कर रही है, चिंतन के साथ निर्णय होता है, तभी महासभा प्रगति कर रही है। महासभा के कार्यों में संघहित प्रमुख है। जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के प्रतिनिधि सम्मेलन के मंचीय कार्यक्रम में महासभा अध्यक्ष मनसुख लाल सेठिया ने सम्मेलन के प्रारंभ की घोषणा की एवं श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन किया। आपने महासभा द्वारा किए जाने वाले आयामों की जानकारी दी। महासभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि विश्रुतकुमार जी ने महासभा की गति प्रगति के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। पूज्यप्रवर ने मुनि निकुंजकुमारजी को 31 दिन की तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया