धुआं बनकर लंबा जीवन जीना महत्वपूर्ण नहीं : आचार्यश्री महाश्रमण
धर्म दिवाकर आगम व्याख्याता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आयारो आगम की व्याख्या करते हुए फरमाया कि आयारो के दूसरे अध्याय में कहा गया है- आदमी जन्म लेता है और जीवन जीता है। किसी का जीवन काल कभी लंबा या मध्यम होता है तो किसी का अल्प। जन्म और मृत्यु का गहरा संबंध होता है। जन्म विहीन मृत्यु नहीं और मृत्यु विहीन जन्म नहीं होता। आयुष्य कर्म का अपना नियम है कई उत्तम पुरुषों का आयुष्य निरुपकम होता है, अर्थात उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती। देवता और नारकी का आयुष्य निरुपकम वाला होता है। कई मनुष्यों का आयुष्य अल्प होता है।
जीवन कितना लंबा है, इसकी अपेक्षा कैसे जीना और क्या करना यह महत्वपूर्ण है। यदि अल्प आयुष्य वाला व्यक्ति अच्छा धार्मिक जीवन जीता है, अच्छा कार्य करके जाता है तो वह श्रेयस्कर हो सकता है। अच्छा जीवन जीना श्रेयस्कर होता है, धुआं बनकर लंबा जीवन जीना महत्वपूर्ण नहीं है। कितना जीवन होगा यह हमारे हाथ की बात नहीं, यह तो भाग्य पर आधारित हो सकता है। पर कैसे जीना, इसमें पुरुषार्थ की प्रधानता है। पुरुषार्थ हमारे हाथ में है, भाग्य हाथ में नहीं है। हम अच्छा पुरुषार्थ कर अच्छा जीवन जीने का प्रयास करें।
हमारी दो इंद्रियां कान और आंख में ह्रास हो सकता है। घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेंद्रिय में ज्यादा हीनता नहीं आती। आयुष्य में कमी आ सकती है, आंख या कान की शक्ति में कमी आ सकती है। हमारे जीवन में कान की अपेक्षा आंखों का ज्यादा महत्व है। अन्य कार्यों के साथ अध्यात्म भी जीवन में हो तो यह सफलता की बात हो सकती है। पूज्यप्रवर ने गजसुकुमाल आख्यान के माध्यम से समझाया कि संतों का घर में आना बड़े भाग्य की बात होती है मानो कल्पवृक्ष घर में आ गया हो। पूज्यप्रवर ने विभिन्न तपस्याओं का प्रत्याख्यान करवाया। जैन विश्व भारती द्वारा आचार्यप्रवर की मंगल सन्निधि में समण संस्कृति संकाय द्वारा वर्ष 2024 का गंगादेवी सरावगी जैन विद्या पुरस्कार विमला डागलिया को प्रदान किया गया। इस संदर्भ में विमला डागलिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस कार्यक्रम का संचालन जैन विश्व भारती के महामंत्री श्री सलिल लोढ़ा ने किया।