आत्म कल्याण के लिए निवृत्ति की दिशा में आगे बढ़ें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्म कल्याण के लिए निवृत्ति की दिशा में आगे बढ़ें : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ सरताज युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपनी दैनिक प्रवचन के अंतर्गत कहा कि मनुष्य के जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक अवस्थाएं आती हैं। बाल्यावस्था से लेकर किशोरावस्था, युवा, प्रौढ़ और अंत में वृद्धावस्था भी होती है। उम्र के हिसाब से मनुष्य अपने-अपने कार्य करता है, जैसे खेलना, पढ़ाई करना, व्यापार करना, समाज सेवा आदि-आदि। कई-कई आदमी वृद्धावस्था में भी सक्रिय रूप से कार्य करते हैं। आगम में बताया गया कि साधु जीवन में 60 वर्ष की संपन्नता के बाद स्थविर हो जाता है। मनुष्य को 70-75 वर्ष आ जाएं, उसके पश्चात वह किसी सभा-संस्था आदि में पद नहीं लेकर उसके संरक्षक की भूमिका में रह सकते हैं। वृद्धावस्था के आने के पश्चात मनुष्य को अपनी आत्मा के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए। धर्म-ध्यान, साधना, जप, स्वाध्याय आदि में समय लगाना चाहिए। इसके साथ ही खान-पान का भी विवेक रखें, संयमी रहें, आत्म कल्याण के लिए इस अवस्था में निवृत्ति की दिशा में आगे बढ़ें और धार्मिक प्रकृति में रहने का प्रयास करें।
गजसुकुमाल के आख्यान के पश्चात पूज्य प्रवर ने अनेकों तपस्वियों को तपस्या का प्रत्याख्यान करवाया। मुख्य प्रवचन के पश्चात् जैन विश्व भारती के समण संस्कृति संकाय के दीक्षांत समारोह में फरमाया कि जैन विद्या के प्रसार का जो कार्य वर्षों पहले आत्मबोध के नाम से तेरापंथी महासभा द्वारा संचालित किया जाता था वह कार्य वर्तमान में जैन विश्व भारती के समण संस्कृति संकाय विभाग के द्वारा किया जा रहा है। इसमें उम्र की कोई सीमा नहीं है, चाहे कोई 20 वर्ष का हो या 70 वर्ष का। इससे व्यक्ति का स्वाध्याय बढ़ता है, स्वाध्याय कर जैन विद्या की परीक्षा दी जा सकती है। जैन विश्व भारती का साहित्य विभाग साहित्य का भंडार है, जहां कितने ग्रंथ, कितनी पुरानी पांडुलिपियां, हस्तलिखित लिपियां आज भी मौजूद हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से, साधना की दृष्टि से बहुत सुंदर जगह है, जहां मुमुक्षु बहनें, भाई, समणियां वहां रहकर स्वाध्याय करती हैं। जैन विश्व भारती के अंतर्गत आगम, जैन विद्या, सम्यक दर्शन कार्यशाला, परीक्षा, अध्ययन और अनेकों प्रकार की गतिविधियां निरंतर गतिमान हैं।
दीक्षांत समारोह के संदर्भ में जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्तिकुमारजी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समण संस्कृति संकाय ज्ञानार्जन के साथ-साथ अध्यात्म विकास में भी सहायक है। संकाय के विभागाध्यक्ष मालचंद बैगानी, पुखराज डागा ने अपने विचार व्यक्त किए। जैन विद्या पाठ्यक्रम से जुड़ी महिलाओं ने गीत का संगान किया। जैन विश्व भारती के पदाधिकारीगण द्वारा आगम मंथन प्रतियोगिता की प्रश्न पुस्तिका आचार्य प्रवर के समक्ष लोकार्पित की गई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।