दो पचरंगी से रंगारंग बना बीदासर

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दो पचरंगी से रंगारंग बना बीदासर

बीदासर। बीदासर में कई वर्षों बाद दो पचरंगियां एक साथ संपन्न हुई। इस अवसर पर ‘शासनश्री’ साध्वी मदनश्रीजी, ‘शासनश्री’ साध्वीश्री कुलप्रभा जी, ‘शासनश्री’ साध्वी श्री विमलप्रभाजी ने गीत, कविता एवं विचारों के द्वारा अपनी भावाभिव्यक्ति दी। केन्द्र व्यवस्थापिका साध्वी कार्तिकयशा जी ने इस अवसर पर कहा कि बीदासर की मिट्टी कोई दूसरे प्रकार की है। इस मिट्टी में पराक्रम और पौरूष का विशेष प्रभाव रहा है। यहां के श्रावक दृढ संकल्प के धनी और शक्तिशाली हैं, उनके नस-नस में श्रद्धाभक्ति का मजीठी रंग चढ़ा हुआ है। आचार्य श्री कालूगणी और आचार्यश्री तुलसी के शासनकाल में बीदासर में बहुत तपस्याएं हुई। लघुसिंह निष्क्रीडि़त तप की पांच परिपाटियां बीदासर में हुई। अतः तपो भूमि बीदासर में दो पचंरगी तप होना राठौडी श्रावकों की मजबूती का परिचायक है। इस पचरंगी की उनेक विशेषताओं का वर्णन करते हुए साध्वीश्री ने कहा कि इस पचरंगी में ज्ञानशाला के 7 बच्चों ने पंचोला, चोला, तेला आदि तप किया। 84 वर्षीय श्रावक ने भी पंचोला तप किया। तथा अनेक जोड़ियों जैसे मां-बेटे, बाप-बेटी, दादी-पोता, दादी-पोती, मां-बेटी, बहन-बहन ने भी इसमें भाग लिया। सर्वाधिक संख्या पंचोले तप की रही जिसमें लगभग 14 पंचोले हुए। इस अवसर पर ‘शासनश्री’ साध्वीश्री अमितप्रभाजी ने कहा कि बीदासर तपोभूमि कहलाती है, इसका साक्षात् उदाहरण आज देखने को मिल रहा है। बीदासर वासी तप के श्रेत्र में यूं ही आगे बढ़ते रहें। मंगलाचरण रूपम बैंगाणी ने अपने सुमधुर गीत से किया। महिला मण्डल एवं युवक परिषद् ने गीत की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर तेरापंथ सभाध्यक्ष सम्पत बैद, महिला मण्डल मंत्री भावना दुगड़ आदि ने तपस्वियों का अनुमोदन किया।