ढाई अक्षर से बनती है रिश्तों की दुनिया खुशहाल

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ढाई अक्षर से बनती है रिश्तों की दुनिया खुशहाल

चेन्नई । ढाई अक्षर का शब्द है- प्रेम, प्यार, स्नेह, शक्ति, भक्ति, दुर्गा, लक्ष्मी आदि। ढाई अक्षर का अपना महत्व है। दो अक्षर का लक होता है और ढाई अक्षर का भाग्य। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी डॉ गवेषणाश्रीजी ने जैन तेरापंथ नगर, माधावरम् चेन्नई स्थित तीर्थकर समवसरण में 'ढ़ाई अक्षर के शब्द' विषय पर प्रस्तुति देते हुए कहे। साध्वीश्री ने आगे कहां कि पारिवारिक संबंध हो, सामाजिक क्षेत्र हो, व्यापारिक क्षेत्र हो, प्रत्येक संबंधों में ढाई अक्षर की महत्त्वपूर्ण योग्यता है। धर्म शब्द भी ढाई अक्षर का है। धर्म-व्याख्या नहीं व्याप्ति है, परिभाषा नहीं प्रयोग है, अभिव्यक्ति नहीं अनुभूति है, धर्म नारा नहीं जीवन है। जीवन में यदि ढाई अक्षर को समझ लें तो रिश्तों की दुनिया खुशहाल बन सकती है। साध्वी मयंकप्रभाजी ने कहा कि पत्नी को पति का प्रेम चाहिए, बच्चों को माता-पिता का स्नेह, रोगी को सेवार्थी का प्रेम और साधु-संतों को श्रावकों की भक्ति चाहिए। यह एक चिकित्सा है जो कामधेनु और कल्पवृक्ष के समान है। इस ढाई अक्षर में ऐसा चुंबकीय आकर्षण है जिससे समाज, परिवार, खुशी और प्रेम से रह सकता है। साध्वी दक्षप्रभाजी ने सुमधुर गीतिका प्रस्तुत की। साध्वी मेरुप्रभाजी ने कुशलतापूर्वक कार्यक्रम का संचालन किया।