ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया

ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया

जय-जय जय सति लावण्यश्रीजी, तेरी महिमा गाएं
इतनी क्या जल्दी जाने की, हमको भी बतलाएं।।
संयम की उजली चादर का, तुमने मान बढ़ाया।
ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया, जीवन को चमकाया।
तिरपन साल संयम-पर्याय के, किए हैं काम सवाए।।
सोहनकुमारी जी सतिवर से, पाए थे तुमने संस्कार।
तन की छाया बनकर रहती, किया था जीवन का श्रृंगार।
लज्जावती सतिवर सहयोगी! क्या-क्या बात बताएं?
हुबली मर्यादा-महोत्सव पर, किए साथ में गुरूदर्शन।
सहज-सरलता लखकर तेरी, हर्षित-पुलकित है कण-कण।
मीरा रोड का मिलन हमारा, स्मृतियों में वो आए।।
दो हजार बीस का पावस, बंगलोर में साथ हुआ।
यशवन्तपुर में हुआ आपका, गांधीनगर में मेरा हुआ।
छः बार हम मिले आपसे, अपना भाग्य सराएं।
सिद्वान्तश्रीजी, दर्शितप्रभाजी को तुमने तैयार किया।
खूब समाधि दी दोनों ने, कहता मेरा आज हिया।
हिम्मत रखना छोटी सतियों, अणिमा भाव सुनाएं।।
दिव्य लोक से गण की सेवा, करते रहना तुम सतिवर।
गण का कर्ज चुकाना अब तुम, गण ही है यह श्रेयस्कर।
महाश्रमण गुरुवर चरणों में, सविनय शीश झुकाएं।।
लय - जनम-जनम का साथ