आत्मा में रमण करना साधु के लिए है श्रेयस्कर : आचार्यश्री महाश्रमण
धर्मोपदेशक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम वाणी की अमीवर्षा कराते हुए फरमाया कि हर आदमी के पास अतीन्द्रिय ज्ञान होना जरूरी नहीं लगता है। केवलज्ञानी तो सर्वज्ञ, संपूर्ण अतीन्द्रिय ज्ञान के धारक, उत्पन्न ज्ञान, दर्शन के धारक अर्हत् होते हैं। उनके भीतर से ज्ञान उत्पन्न हो गया है। केवलज्ञान प्राप्त करने के लिए कॉलेज में पढ़ाई करनी जरूरी नहीं है। केवलज्ञान प्राप्त करने के लिए किसी विश्व विद्यालय के प्रमाण की अपेक्षा नहीं रहती। वह तो भीतर से उभरने वाला ज्ञान होता है। मनःपर्यव ज्ञान किसी-किसी साधु में हो सकता है, गृहस्थ में तो वह भी नहीं होता। अवधिज्ञान, विभंग अज्ञान भी हर किसी मनुष्य के पास नहीं होते हैं।
ऐसी स्थिति में अर्हतों का उपदेश, उनकी आज्ञा या आगम एक आधार बन सकते हैं। साधु के लिए आगम या अन्य ग्रन्थ एक आलम्बनभूत बन सकते हैं। आगम तो शिरोमणि ग्रन्थ होते हैं। आगम के अलावा आचार्य श्री भिक्षु व पूज्य जयाचार्य द्वारा प्रणीत साहित्य हैं, वे हमारी तेरापंथ परंपरा के लिए महत्वपूर्ण हैं। आचार्य भिक्षु हमारे धर्मसंघ के आधारभूत रहे हैं तो जयाचार्य आचार्य भिक्षु के भाष्यकार रहे हैं। आचार्यश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का साहित्य भी हमें प्राप्त होता है। आयारो में कहा गया है कि जो साधु अनाज्ञा में वर्तन करते हैं, आत्मा में रमण नहीं करते हैं, अर्हतों के उपदेश का अनुसरण नहीं करते हैं वे काम-भोगों में अपने चित्त को लगा देते हैं। साधु बन जाना अच्छी बात है, परन्तु छठे गुणस्थान में प्रमाद हो सकता है। साधु कभी आसक्ति, मोह में चला जा सकता है, और अधिक विषयासक्त हो जाए तो उसका साधुपन भी जा सकता है। छोटी चोरी, गलत बात बोल दे तो साधुपन नहीं जाता, किन्तु दोष लग सकता है। बड़ी चोरी, हिंसा, हत्या में जाने पर साधुपन समाप्त हो जाता है। इसलिए साधु को आत्मरमण करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया- प्रमाद के बारे में मैं एक चिंतन कर पाया हूं कि प्रमाद दो प्रकार का होता है- एक तो तीसरा आश्रव प्रमाद है, एक अशुभ योग रूप प्रमाद होता है। प्रमत्त संयत गुणस्थान में हर समय अशुभ योग प्रमाद होना आवश्यक नहीं है, पर प्रमाद आश्रव छठे गुणस्थान में हमेशा रहेगा। छठे गुणस्थान वाले साधु के मिथ्यात्व आश्रव नहीं है, अध्र्य आश्रव नहीं है, परंतु प्रमाद, कषाय और योग आश्रव विद्यमान रहते हैं। छठे गुणस्थान में साधु स्वाध्याय कर रहा है, शुभ योग में है, पर जब तक वह छठे से सातवें गुणस्थान में नहीं आ जाता, उसके प्रमाद आश्रव चालू है। छठे गुणस्थान में प्रमाद आश्रव की नियमा है और अशुभ योग रूपी प्रमाद आश्रव की भजना है, यह मेरा निष्कर्ष है।
भौतिक साधनों में भी साधु अनासक्त रहे। संयम के हीरे के सामने भौतिक चीजें तुच्छ हैं। उनके जाल में त्यागी साधु न फंसें। हमारे मन से भी बहुत पाप लग सकते हैं। जितना पाप का बंधन संज्ञी प्राणी करते हैं, उतना पाप का बंध असंज्ञी प्राणी नहीं कर सकते। असंज्ञी प्राणी नरक में जायेंगे तो पहली नरक में ही जायेंगे। संज्ञी प्राणी तो सातवीं नरक तक जा सकते हैं। संज्ञी प्राणियों में भी पुरुष जितना पाप कर सकते हैं, महिला उतना पाप नहीं कर सकती। महिला तो ज्यादा से ज्यादा छठी नरक तक जा सकती है। संज्ञी प्राणी जितना धर्म कर सकते हैं, उतना धर्म असंज्ञी प्राणी नहीं कर सकते हैं। संज्ञी प्राणी वीतराग बन सकते हैं। पाप करने, धर्म करने व पुण्य बांधने में संज्ञी मनुष्य, असंज्ञी से आगे रहते हैं। हम आत्मा में जितना रमण करें उतना हमारे लिए श्रेयस्कर हो सकता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने मुनि गजसुकुमाल के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। अनेक तपस्वियों ने आचार्य प्रवर से अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। तदुपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा अलंकरण एवं पुरस्कार सम्मान समारोह का समायोजन हुआ। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश डागा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। वर्ष 2024 के युवा गौरव पुरस्कार अभातेयुप के पूर्व अध्यक्ष विमल कटारिया को तथा आचार्यश्री महाश्रमण युवा व्यक्तित्व पुरस्कार विपिन पितलिया को प्रदान किया गया। श्री कटारिया के प्रशस्ति पत्र का वाचन अभातेयुप के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पवन माण्डोत एवं श्री पितलिया के प्रशस्ति पत्र का वाचन उपाध्यक्ष द्वितीय जयेश मेहता ने किया। अलंकरण व पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने अलंकरण/पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को पावन आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन अभातेयुप के महामंत्री अमित नाहटा ने किया। नेशनल रेलवे कमेटी मेम्बर छोटू भाई पाटिल ने आचार्यश्री का दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।