साधुपन गंवाना है इन्द्र का इन्द्रत्व समाप्त होने के समान : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साधुपन गंवाना है इन्द्र का इन्द्रत्व समाप्त होने के समान : आचार्यश्री महाश्रमण

तीर्थंकर के प्रतिनिधि, धर्मोपदेशक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगमवाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि आयारो आगम में बताया गया है- कई भव्य आत्माएं संयम जीवन को स्वीकार कर दीक्षित हो जाती हैं। कई चारित्र आत्माएं साधुपन छोड़कर गृहस्थ में चली जाती हैं। वापस घर में जाने के दो कारण हैं- मति मंदता और मोह का आवरण।
जो मन्द होते हैं, उनका चिन्तन गहरा नहीं होता है। बाह्य प्रभाव देखकर चिन्तन आता है कि मैं साधु क्यों बना? गृहस्थ कितने सुखी हैं। दसवेंआलियं आगम में बताया गया कि जिस साधु का मन विचलित होने लगे उसे उस आगम में उल्लेखित 18 बातें पढ़नी चाहिये कि गृहस्थ का जीवन कैसा है? इन 18 बातों को पढ़ने से, चिन्तन करने से वापस उनका मन साधुपन में जम सकता है। दूसरा कारण है कि आदमी चिन्तनशील है, पर मोह के प्रभाव से गार्हस्थ्य में चला जाता है, साधुपन को छोड़ देता है। तपते सूर्य के सामने बादल आ जाये तो सूर्य की तेजस्विता मन्द पड़ जाती है। मोह के प्रभाव से हमारे चिन्तन पर आवरण आ सकता है। इसी तरह मन्दता और ऊपर से मोह का आवरण आ गया तो साधु घर जाने को उद्यत हो जाते हैं। कई तो घर चले जाते हैं, पर बाद में वे कई पश्चाताप भी करते हैं कि मैं श्रामण्य में रहता तो कितना अच्छा होता। अनेक साधु हमारे धर्मसंघ में हुए हैं, जो दीक्षित हुए, घर चले गये और फिर वापस दीक्षित हो गये।
साधुपन पाने के लिए बड़ा भाग्य चाहिये, तभी वह अंत समय तक साधना कर सकता है। भगवान महावीर ने भी गिरते हुए मुनि मेघ कुमार को संभालकर संयम में स्थिर कर दिया। गिरते समय संभाल लेने से व्यक्ति डूबने से बच सकता है, साधुपन में सुस्थिर हो सकता है। मन्दता और मोह के प्रभाव से व्यक्ति दलदल में फंस सकता है। साधुपन छोड़ गृहस्थ में रहने से दयनीय स्थिति हो सकती है, बाद में वह पश्चाताप करता है। साधुपन का संयम का हीरा जिसे प्राप्त होता है और उसे वह गंवा देता है तो वह ऐसी स्थिति होती है जैसे किसी इन्द्र का इन्द्रत्व समाप्त हो जाये। जिन्दगी भर अन्त समय तक अच्छी तरह साधुपन पल जाये तो वह बड़ा भाग्यशाली होता है।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्य प्रवर ने ‘चन्दन की चुटकी भली’ पुस्तक से आख्यान का वाचन किया। मुनि उदितकुमारजी ने अपने विचार व्यक्त किए। तदुपरान्त तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत के सदस्यों ने चौबीसी के सातवें सुपार्श्व स्तवन का संगान किया। पूज्यवर ने छोटी-बड़ी तपस्या करने वाले तपस्वियों को तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनिश्री दिनेशकुमारजी ने किया।