समणीद्वय जी का लंदन में धर्मप्रभावक प्रवास
लंदन
समणी प्रतिभाप्रज्ञा जी एवं समणी स्वर्णप्रज्ञा जी ने लंदन की धरती पर श्रमसाध्य एवं धर्मप्रभावक पौने दो वर्ष की सफलतम यात्रा करके पुन: गुरुचरणों में उपस्थित हुए हैं। समणी स्वर्णप्रज्ञा जी की यह लंबी एवं प्रथम यात्रा थी। उन्होंने अपनी इस यात्रा प्रवास में अनेकों व्यक्तियों को धर्म एवं संघीय संस्कारों से आपूरित करने का प्रयास किया।
कोरोना काल में जहाँ लोगों का आना-जाना बंद था, फिर भी समणी स्वर्णप्रज्ञा जी ने ऑन लाइन के द्वारा घर बैठे 8-9 क्लासेज़ देकर अपने दायित्व को पूरा किया। ज्ञानशाला के माध्यम से न केवल लंदन अपितु स्वीट्जरलैंड, आयरलैंड, मानचेस्टर, बर्मिंघम के लगभग 60 बच्चों एवं 70 बड़े लोगों को पूरा भक्तांबर स्तोत्र कंठस्थ करवाया। इन बच्चों में 5 साल से लेकर 13 साल के बच्चे शामिल थे। जो यू0के0 एवं यूरोप एवं इंडिया से 70 बड़े लोगों ने प्रतिक्रमण सीखा। समणी स्वर्णप्रज्ञा जी ने गुरुदेव के आने वाले षष्ठीपूर्ति के उपलक्ष्य में 60 लोगों को श्रावक व्रत धारण करवाए, गुरु चरणों में श्रद्धाभक्ति अर्पित की। उन्होंने प्रतिदिन भक्तामर का विश्लेषण और आगम सूक्तों के आधार पर प्रवचन किया। विदेशी संस्कृति में पले-पुसे लोगों में तत्त्वज्ञान के प्रति रुचि पैदा की। भक्तामर आदि सीखे लोगों ने अपनी भावनाओं के द्वारा विदाई के क्षणों में मंगलभावना के रूप में समणी स्वर्णप्रज्ञा जी के प्रति आभार ज्ञापित किया।