एक साथ दो संतों की तपस्याओं का प्रत्याख्यान

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एक साथ दो संतों की तपस्याओं का प्रत्याख्यान

उग्र विहारी तपोमूर्ति मुनि कमल कुमार जी के सान्निध्य में मुनिक् नमिकुमार जी व मुनि मुकेश कुमार जी ने तपस्या का प्रत्याख्यान किया। इस अवसर पर मुनि कमल कु‌मार जी ने कहा कि भैक्षवशासन जयवंता शासन है, इसकी नींव त्याग तपस्या से लगी है। आचार्य श्री महाश्रमण जी के शासन काल में नित नये कीर्तिमान बनते जा रहे हैं। गत वर्ष वर्षीतप के तपस्वियों का कीर्तिमान था तो गत चातुमार्स में इक्कीस रंगी तपस्या का कीर्तिमान बना। इस बार सूरत में एक साथ अठाई तप कीर्तिमान बना और भी कितनी तरह के कीर्तिमान बनते जा रहे हैं। पूज्य प्रवर की अखंड पुण्याई है। इस भौतिक युग में इतने तपस्वि‌यों का होना अपने आप में परम सौभाग्य की बात है। पूज्य प्रवर के कर कमलों संयम रत्न स्वीकार करने वाले साधु-साध्वियों में मुनि नमिकुमार जी अद्वितीय संत कहे जा सकते हैं। इन्होंने मात्र 8 वर्ष के संयम पर्याय में तपस्या का अंबार लगा दिया। उपवास, बेले, तेले ही नहीं 25 से 38 तक के तथा 1 से 16 तक की तपस्या की लड़ी बना दी, उसके अलावा 18-19-20-51-62 की तपस्या और उसके साथ इतने प्रांतों की सुदीर्घ यात्राएं सुनकर मन आश्चर्य चकित हो जाता है।
मुनिश्री ने आगे कहा कि 66 वर्ष की अवस्था में दीक्षा लेकर इस प्रकार तपस्या और यात्रा कर पाना गुरूओं की कृपा बिना असंभव है। मुनि मुकेशकुमार जी को भी अभी दीक्षा के 6 महीने ही हुए हैं जिसमें वर्षीतप, बेले और नौ की तपस्या करना और स्वावलंबी रहना बड़ी बात है। इनकी इच्छा है कि कुछ दिन और तपस्या करूं परंतु वर्षीतप पचखा हु‌आ है इसलिए अभी आगे बढ़‌ना उचित नहीं लग रहा है। तपस्या की भावना रहनी चाहिये, परंतु द्रव्य क्षेत्र काल भाव सबको देखना जरूरी है। कार्यक्रम में मुनि नमि कुमार जी ने विचार प्रकट करते हुए कहा कि सबसे पहले मैं मेरे गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रति आभार प्रकट करता हूँ कि उन्होंने मुझे इस अवस्था में दीक्षा देकर तार दिया। फिर मैं मेरे अग्रणी मुनि कमल कुमार जी के प्रति आभार प्रकट करता हूँ कि आपकी सतत प्रेरणा और प्रोत्साहन के कारण ही मैं कुछ कर पाया हूँ। मेरी कोई विशेष करणी की हुई थी कि मुझे ऐसे अग्रणी मिले जो मेरी पूरी सार संभाल करते हैं, मुझे हर समय जागरूक बनाकर रखते हैं। मुनि अमन कुमार जी, मुनि मुकेश कुमार जी का भी मुझे पूरा सहयोग मिल रहा है, सबके सह‌योग से ही मैं कुछकर पाता हूँ। सूरत से मेरा संसारपक्षीय परिवार आया है, उनकी आज्ञा से ही मुझे दीक्षा प्राप्त हुई, उनका भी बड़ा उपकार है। डोंबिवली क्षेत्र बड़ा साताकारी है, यहां के भाई बहनों का भी सहयोग रहता है।
कार्यक्रम में मुनि अमनकुमार जी ने स्वरचित गीत का संगान किया। मुनि मुकेश कुमार जी ने भी अपने हृदयोगार व्यक्त किए। तरपस्वी चन्दनमल ढींग ने पूज्यवर के संदेश का वाचन किया। भगवती लाल सोनी ने साध्वी शकुंतला कुमारी जी की भावना प्रस्तुत की। संजय खाब्या ने साध्वी मंजूयशा जी की तथा सुरेश बैद ने ‘शासनश्री’ साध्वी मदनश्रीजी के संदेश का वाचन किया। साध्वियों द्वारा प्रेषित गीत का संगान महिला मंडल की बहनों तथा ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने प्रस्तुति दी।