प्रेक्षाध्यान आत्मा और शरीर दोनों के विकास में लाभदायी : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 30 सितंबर, 2021
प्रेक्षा प्रणेता, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे भीतर लोभ एक वृत्ति है। आसक्ति, लोभ, लालसा, तृष्णाये चीजें एक मोहनीय कर्म से जुड़ी हुई होती हैं। आसक्ति आदमी में पदार्थ के प्रति और प्राणी के प्रति भी हो सकती है। आसक्ति बंधन है। अनासक्ति मुक्ति है। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत पाँचवाँ दिन नशामुक्ति की बात है। नशे के संदंर्भ में भी आसक्ति को देखा जा सकता है। उसकी ऐसी आदत पड़ जाती है कि नशे का परित्याग करना मुश्किल हो सकता है। वह एक व्यसन हो जाता है। शराब पीने वाले लोग हैं, उनकी चित्त में भ्राँति हो जाती है। चित्त भ्राँत होने पर आदमी पापाचार संलग्न होकर दुर्गति को प्राप्त होते हैं। इसलिए मद्यपान न स्वयं करना चाहिए, न दूसरों को देना चाहिए। अणुव्रत आंदोलन में नशामुक्ति भी एक अंग है। अहिंसा यात्रा की त्रिसूत्री में भी नशा-मुक्ति की बात है। नशे के कारण आत्मा का नुकसान होता है और व्यावहारिक कठिनाई भी हो सकती है। यह एक प्रसंग से समझाया कि नशामुक्ति से आर्थिक समस्या कम हो सकती है। ये नशा तो गरीबी को पकड़े रखता है। नशा छोड़ने से संयम होता है। गुरुदेव तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ जी ने कितने लोगों को समझाकर नशा छुड़वाया होगा। नशे का पूरा त्याग न हो सके तो जितना हो सके उतना तो करो। हमारे साधु-साध्वियाँ व समणियाँ भी जगह-जगह क्षेत्रों में जाते हैं, वहाँ पर भी नशामुक्ति की प्रेरणा देते हैं, त्याग करवाते हैं। साधु-साध्वी व समणियाँ एक संदर्भ में राष्ट्र की सेवा करने वाला वर्ग हो सकता है। आज प्रेक्षाध्यान का दिन भी है। यह भी नशामुक्ति से किसी अंश में जुड़ा हुआ हो सकता है। प्रेक्षाध्यान योग साधना के रूप में है। इसमें भी अनेक प्रयोग हैं। अर्हं ध्वनि, कायोत्सर्ग, श्वासप्रेक्षा आदि अनेक प्रयोग हैं। जप का प्रयोग भी होता है। कई अनुप्रेक्षाओं के प्रयोग भी हैं। कायोत्सर्ग का लंबा प्रयोग भी कराया जाता है।
प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में पाँच सूत्र हैंभावक्रिया, प्रतिक्रिया विरति, मैत्री, मिताहार और मितभाषी। ये जीवनशैली के सुंदर सूत्र हैं। जो कार्य करते हों, उसी में ध्यान लगाओ, यह एक प्रसंग से समझाया। प्रेक्षाध्यान है, केवल देखना। न प्रियता, न अप्रियता। अंतर्यात्रा करो, संवेदनों को देखो। प्रेक्षा यानी गहराई से देखना। प्रेक्षाध्यान आत्मा की दृष्टि से आध्यात्मिक चीज है और योग साधना से शारीरिक लाभ भी हो सकता है। लाडनूं में तुलसी अध्यात्म केंद्र तो स्थूल भाषा में ध्यान-भूमि, ध्यान-गृह बन गया। सबका समुचित विकास होता रहे यह कामना है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
प्रेक्षा फाउंडेशन के सह-संयोजक अमित जैन एवं अणुव्रत समिति, भीलवाड़ा के मंत्री राजेश चोरड़िया ने अपने भाव अभिव्यक्त किए।
अखिल भारतीय महिला मंडल का शपथ ग्रहण समारोह महिला मंडल के 46वें अधिवेशन में नीलम सेठिया का नई अध्यक्षा के रूप में मनोनयन हुआ। पूर्व अध्यक्ष पुष्पा बैद ने वर्ष भर का लेखा प्रस्तुत किया। महामंत्री तरुणा बोहरा ने कृत कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। नव मनोनीत अध्यक्षा ने पूज्यप्रवर से मंगलपाठ का श्रवण किया। पूर्व अध्यक्षा ने नई अध्यक्षा को पद की शपथ दिलाई। नव अध्यक्षा ने अपनी कार्यकारिणी की घोषणा की। पूज्यप्रवर ने मंगल आशीर्वचन रूप में फरमाया कि समाज में संस्थाएँ भी होती हैं, संस्थाओं के माध्यम से अच्छे ढंग से कार्य का संपादन किया जा सकता है। गृहस्थों की संस्थाओं में, उनमें मैन पावर और मनी पावर चाहिए। योग्य, निष्ठा व समर्पण भाव वाले कार्यकर्ता हों। तो संस्था सुरक्षित रह सकती है। विकसित हो सकती है।
संस्था के पास आर्थिक फंड भी होता है, आर्थिक फंड में नैतिकता रहे। मनी पावर में सुचिता और शुद्धता रहे। संस्था का प्रबंधन अच्छा रहे। चुनाव व्यवस्था के साथ हो। मैं यह सामान्य बात बता रहा हूँ। संस्था के मुख्य व्यक्ति, पदाधिकारी हैं, उनकी सूझ-बूझ अच्छी हो। चिंतन शक्ति, समीक्षा शक्ति उच्च श्रेणी की हो। मानसिक तनाव न रहे। ये पाँच बातें सामान्यतया संस्था के लिए अपेक्षित होती है। अखिल भारतीय महिला मंडल मुझे एक अच्छी संस्था प्रतीत होती है। बहनों में संस्कार अच्छे हैं। धार्मिकता से जुड़ी है। बौद्धिकता-शिक्षा भी अच्छी है। इनकी अभिव्यक्ति भी अच्छी है। प्राय: विवाद भी नहीं है। साधु-साध्वियों की सेवा में भी संलग्न रहती है। एक अच्छा नेटवर्क है। ये एक विराट और सुंदर संस्था है। तेरापंथ के भाग्य की बात है कि इतनी संस्थाएँ मिली हुई हैं। समर्पण भाव और क्षमता है, यह समाज की भाग्यवत्ता का द्योतक है। कन्या मंडल भी इससे जुड़ा है। महिला मंडल एक गौरवपूर्ण संस्था है। आज दायित्व हस्तांतरण हुआ है। आने वाला आगे नया अच्छा काम करता रहे। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ में वही व्यक्ति, पदाधिकारी या संस्था प्रगति करती है, जो अपने गुरु के प्रति समर्पित होती है। तेरापंथ का महिला सम्मान उत्तरोत्तर गतिशील है। आचार्यों की दृष्टि की आराधना करता हुआ यह समाज ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। बड़ा नेटवर्क है। और प्रगति करता रहे। मुख्य नियोजिका जी ने चारित्र की विवेचन करते हुए कहा कि ज्ञान दूध है, श्रद्धा दही है और चारित्र नवनीत है। ज्ञान का सार हैआचार। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि बाहरी नशे से मुक्त रहें और गुरु भक्ति के नशे से सराबोर रहें।