स्वर विज्ञान से अनेक समस्याओं का समाधान

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स्वर विज्ञान से अनेक समस्याओं का समाधान

तेरापंथ भवन कांदिवली में साध्वी डॉ. मंगलप्रज्ञा जी के सान्निध्य में तेरापंथ युवक परिषद कांदिवली और मलाड के तत्वावधान में स्वर विज्ञान कार्यशाला आयोजित की गई। इस अवसर पर साध्वीश्री ने कहा- स्वर विज्ञान जैन परम्परा का प्राचीन महत्वपूर्ण उपक्रम है। यह साधना प्राण शक्ति की साधना है। हठ योग की भाषा में चन्द्र स्वर को ईड़ा, सूर्य स्वर को पिंगला और दोनों स्वर की संयुति को सुषुम्ना कहा जाता है। तिथि वार और दिशा के साथ स्वरों का सही नियोजन करके करणीय और अकरणीय कार्य का निर्णय किया जा सकता है। सोमवार, बुधवार और शुक्रवार ये तीनों चन्द्रस्वर से संबंधित है, जबकि मंगलवार, शनिवार और रविवार- ये तीनों सूर्यस्वर से जुड़े हैं। गुरुवार सबके साथ जुड़ा है जिसका गुरु प्रबल होता है वहां समस्याएं हावी नहीं होती।
साध्वी श्री ने कहा व्यक्ति कोई भी कार्य करता है, वह सफल होना चाहता है। इसके लिए स्वरों का ज्ञान आवश्यक है। हर सौम्य कार्य या किसी भी कार्य के स्थायित्व के लिए चन्द्र स्वर का होना आवश्यक है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश इन पांच तत्वों के साथ भी स्वर संयोजन किया जाता है। किसी कार्य को इच्छानुसार सम्पादित करने के लिए स्वरों को बदला भी जा सकता है। गर्मी के समय चन्द्रस्वर की साधना करने से और सर्दी में सूर्यस्वर की साधना करने से अत्यधिक सर्दी या गर्मी का अहसास नहीं होता। भोजन करते समय सूर्य स्वर चले तो पाचन सही होता है। स्वस्थता के लिए स्वरों का संतुलन आवश्यक है। साध्वी वृंद ने ‘अद्भुत स्वर विज्ञान का ज्ञान’ गीत का सामूहिक संगान किया। साध्वी सुदर्शनप्रभा जी ने ध्यान का प्रयोग करवाया।