साधना के क्षेत्र में तपस्या आभूषण के समान : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 28 सितंबर, 2021
अध्यात्म के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आध्यात्मिक साधना में तपस्या का महत्त्व है। प्रत्याख्यान भी किया जाता है। दस प्रत्याख्यान भी प्रसिद्ध हैं। करने वाले इनका समाचरण करते हैं। यहाँ ठाणं आगम में दस प्रकार के प्रत्याख्यान बताए गए हैं, वे उनसे भिन्न हैं। दस प्रकारों में से पहला प्रकार हैअनावर्त्त प्रत्याख्यान यानी भविष्य में करणीय तप को पहले कर लेना। दूसरा प्रकार हैअतिक्रांत प्रत्याख्यान जैसे उलटा। वर्तमान में करणीय तप को बाद में करना। कालमान के बाद तप करना। तीसरा हैकोटि सहित प्रत्याख्यान। एक प्रत्याख्यान का अंतिम दिन और एक प्रत्याख्यान का प्रारंभिक दिन। दो सिरे मिल जाएँ, वह कोटि सहित प्रत्याख्यान। दो तपों का संगम हो जाना। प्रत्याख्यानों में अनेक ग्रंथों की बातें हैं। चौथा प्रकार है, नियंत्रित प्रत्याख्यान। ऐसा संकल्प है कि मैं निरोग रहूँ या अस्वस्थता में चला जाऊँ, पर अमुक-अमुक दिन तप अवश्य करूँगा। पाँचवाँ प्रकार हैसाकार प्रत्याख्यान। आगार या अपवाद सहित प्रत्याख्यान करना। छठा हैअनाकार प्रत्याख्यान। कोई आगार या अपवाद रहित तपस्या-प्रत्याख्यान करना। सातवाँ प्रकार हैपरिमाण कृत प्रत्याख्यान। दत्ति, कवल, भिक्षा, द्रव्य आदि के परिमाण युक्त प्रत्याख्यान। आठवाँ प्रकार हैनिर्वशेष प्रत्याख्यान। अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का संपूर्ण परित्याग कर देना। यावज्जीवन संपूर्ण आहार का प्रत्याख्यान कर देना भी इसके अंतर्गत बताया गया है। नौवाँ हैसंकेत प्रत्याख्यान। संकेत या चि सहित किया जाने वाला प्रत्याख्यान। यह थोड़ा अनिश्चिततापूर्ण हो जाता है। जब तक दीया जलेगा, भोजन नहीं करूँगा। दसवाँ प्रकार हैअद्धवा-प्रत्याख्यान। महर्त-पोरसी आदि कालमान के आधार पर किया जाने वाला प्रत्याख्यान। यों ये दस प्रकार बताए गए हैं। इनसे हमें एक जानकारी मिलती है, किस प्रकार प्रत्याख्यान की व्यवस्थाएँ अतीत में रही होंगी। वर्तमान में तो नवकारशी-पोरसी आदि प्रत्याख्यान ज्यादा प्रसिद्ध है। आगम में ये बातें हैं, इसका भी यथा संभव उपयोग अपनी साधना में कर सकते हैं।
प्रत्याख्यान है, वो अनाहार के रूप में भी होता है। और भी अनेक तरह के प्रत्याख्यान हो सकते हैं। प्रत्याख्यान यानी छोड़ देना। यहाँ तपस्या के रूप में भी प्रत्याख्यान होता है। स्वाध्याय आदि के रूप में भी संकल्प -प्रत्याख्यान हो सकता है। साधना के क्षेत्र में यह तपस्या एक प्रकार का आभूषण है। गृहस्थ उपवास में पौषध करते हैं, तो पौषध कर लेना उपवास का आभूषण हो जाता है।
तप का एक आभूषण जप भी है। तप के साथ जप-स्वाध्याय आदि कोई उपक्रम साथ मिल जाए तो तप और ज्यादा योग युक्त बन जाता है। कितना आध्यात्मिक लाभ मिल सकता है। चातुर्मास में तप और आसानी से हो सकता है। दूसरों से और प्रेरणा व सहयोग मिल जाता है, तो तपस्या में और सहुलियत हो सकती है। अपनी-अपनी परिस्थिति द्रव्य, क्षेत्र, काल-भाव बल, श्रद्धा, आरोग्य आदि को देखकर के आदमी को अपने आपमें तपस्या आदि में नियोजित करना चाहिए। इस तपस्या का महत्त्व है, तो ज्ञानाराधना का भी बड़ा महत्त्व है। व्यवस्थित रूप में स्वाध्याय करना भी बड़ा तप है। गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने अपने ढंग से ज्ञान-स्वाध्याय आदि तप किए थे। उन्होंने जो तपस्या की वो हर किसी के वश की बात नहीं है। हम अपने ढंग से तपस्या-साधना में आगे बढ़ते रहें। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह अणुव्रत प्रेरणा दिवस पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आदमी के जीवन को सुखी, स्वस्थ और सानंद रखने के लिए संयम का संकल्प बहुत सहायक, बहुत साधक सहयोगी सिद्ध हो सकता है। ‘संयम: खलु जीवनम्’। यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण अर्थ वाला शब्द है। आदमी के आचार में, व्यवहार में, विचार में संयम बना रहे। संयमाधारित जीवनशैली हो।
अहिंसा यात्रा में जो तीन सूत्र बताए जा रहे हैं, प्रतिज्ञा भी यथासंभव कराई जा रही है, ये कुछ अंशों में या बहुलांश में अणुव्रत का निचोड़ है। सबमें सद्भावना-मैत्री रहे। भाषा, संप्रदाय, जाति के आधार पर मतभेद न हो। झूठ न बोले, चोरी न करें।
अखिल भारतीय महिला मंडल का 46वाँ राष्ट्रीय महिला अधिवेशन- समर्पिता पूज्यप्रवर ने फरमाया कि समाज में, दुनिया में अनेक-अनेक व्यक्ति महत्त्वपूर्ण प्राप्त हो सकते हैं। आदमी के विकास में उपादान तो खुद का क्षयोपशम या फिर पुण्य का बल चाहिए। साथ में निमित्तों का योग भी उपादानों को बढ़ाने में सहयोगी बन सकता है। आदमी में विकास का बीज तो है, पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की स्थितियाँ मिलती हैं, तो विकास सामने आ जाता है, साकार हो जाता है। अभातेममं द्वारा उन्नति का सम्मान हो रहा है। सम्मान प्राप्त करने वाले का सम्मान और जागृत हो जाता है। दूसरे लोगों को भी इससे विकास की प्रेरणा मिलती है। प्रतिभा है, उसका उपयोग क्या करना है, वह खास बात है। बुद्धि अपने आपमें शुद्धि है। हमारी आत्मा की उन्नति का साक्ष्य बन जाती है।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि कार्यकर्ता होना एक बात है, उसमें श्रावकत्व होना विशेष बात है। वह समाज जागृत समाज होता है, जहाँ शिक्षा का सम्मान हो। सहयोग की भावना हो और कला का विकास हो। कला का मूल्यांकन सामान्यतया हर कोई नहीं कर सकता। मुख्य नियोजिका जी ने केवली की विशेषताओं को विस्तार से समझाया। केवली अनंत ज्ञानी होते हैं, नींद नहीं लेते हैं। केवलज्ञानी को एक ही ज्ञान होता है। बाकि स्वयं प्रकट हो जाते हैं। ज्ञान के आचार को पालन करने वाला अपने ज्ञान का विकास करता है। अणुव्रत महासमिति के पूर्व अध्यक्ष एवं अणुव्रत प्रवक्ता डॉ0 महेंद्र कर्णावट ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि जो पाप को खत्म करने वाला है, वह कुशल है। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्षा पुष्पा बैद ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया। आज के अलंकरण सत्र में अलंकरणों की घोषणा सुनीता जैन ने की। अभातेममं का सर्वोच्च सम्मान श्राविका गौरव सम्मान-2021 के लिए सौभाग देवी बैद-जयपुर केा प्रदान किया गया। वर्ष-2021 का दूसरा श्राविका गौरव सम्मान ललिता धारीवाल, रायपुर को प्रदान किया गया। गौरवशाली पुरस्कार सीता देवी सरावगी प्रतिभा पुरस्कार जो विज्ञान, कला, साहित्य, चिकित्सा आदि विभिन्न क्षेत्रों में गौरवान्वित करने वाली विशिष्ट प्रतिभा को दिया जाने वाला अति विशिष्ट सम्मान-2021 राखी बैद-मुंबई एवं दूसरा पुरस्कार सोनल पीपाड़ा-बैंगलोर को प्रदान किया गया। रूमा देवी विशिष्ट मेहमान के रूप में उपस्थित रही।
चारों पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन महामंत्री तरुणा बोहरा ने किया।