‘महिमा जन्मदाता की’ कार्यशाला में जाना मां-पिता के रिश्ते का महत्व
मुनि दीप कुमार जी ठाणा 2 के सान्निध्य में ‘महिमा जन्मदाता की’ कार्यशाला का आयोजन तेरापंथी सभा कोयम्बतूर द्वारा किया गया। मुनि श्री ने कहा- माता-पिता का रिश्ता दुनिया का सबसे बड़ा रिश्ता होता है क्योंकि वह रिश्ता जन्म से नौ माह पहले ही शुरु हो जाता है। वे लोग किस्मत वाले होते हैं, जिनके सिर पर मां-बाप का साया होता है। याद रखें माता-पिता बूढ़े पेड़ की तरह होते हैं, जो फल भले न दें पर छाया जरूर देते हैं। कहते हैं संसार में पृथ्वी बहुत विराट है, आकाश बहुत विशाल है और ब्रह्माण्ड अन्तहीन है, किन्तु मां-बाप की विशालता इससे भी अधिक है।
मां विश्वभर की लाखों शब्द संपदा वाले शब्द भण्डार का सबसे छोटा किंतु अपने आप मैं परिपूर्ण वात्सल्य भावना से सिक्त रहस्यगर्भित शब्द है। माता-पिता की सबसे असली पहचान बच्चे ही होते हैं। बच्चों मैं उनके संस्कार सहज प्रतिबिम्बित होते हैं। बच्चे नागरिकता का पहला पाठ मां के स्नेह और पिता के संरक्षण में ही सीखते हैं। मुनिश्री ने आगे कहा- वर्तमान परिवेश में माता-पिता अपने मूल स्वरूप को भूलते जा रहे हैं। बच्चों को समय, संस्कार, संरक्षण नहीं दे पा रहे हैं, बहुत बड़ी विडम्बना दिखाई दे रही है। इस अवसर पर मुनिश्री ने सामूहिक एकासन के प्रत्याख्यान कराए। मुनि काव्यकुमार जी ने कहा- मां-पिता के सिवाय अपना कोई नहीं होता। अपने मां-बाप पर इतना विश्वास करो, जितना दवाइयों पर करते हो। वह भले ही कड़वी होगी पर फायदेमंद होगी।