आत्मा के प्रति रहें जागरूक : आचार्यश्री महाश्रमण
जिनशासन के महासूर्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आयारो आगम की अमिवर्षा करते हुए कहा कि गृहस्थ परिग्रह से जुड़ा रहता है। परिग्रह में आसक्ति भी हो सकती है। दो चीजें हैं - ध्रुव और अध्रुव। आत्मा ध्रुव है, जबकि स्थूल शरीर और धन-संपत्ति का संयोग अध्रुव है। जो व्यक्ति ध्रुव को छोड़कर अध्रुव की सेवा करता है, उसकी आत्मा, मोक्ष और धर्म नष्ट हो जाते हैं। अध्रुव धन-संपत्ति भी नष्ट हो जाती है। शरीर और धन-संपत्ति अध्रुव हैं, और मृत्यु हर क्षण निकट आ रही है। जन्म के साथ मृत्यु जुड़ी होती है। हमें धर्म का संचय करना चाहिए। रोज़ सामायिक, नवकार मंत्र का जप, तपस्या, ईमानदारी आदि से धर्म का संचय हो सकता है। पर्युषण पर्व में जितना संभव हो सके, धर्म ध्यान और तप का अभ्यास करना चाहिए। ये आठ दिन धर्म के खाते में आ जाने चाहिए।
समय का कोई भी क्षण असमय नहीं होता, मृत्यु कभी भी आ सकती है। यह सोचकर कि बाद में धर्म कर लूंगा, बहुत बड़ी भूल है, क्योंकि हमें यह नहीं पता कि हमारे पास कितना समय बचा है। इसलिए अध्रुव चीज़ों को छोड़ देना चाहिए। जब हम विरक्त हो जाएं, तो प्रव्रज्या की ओर बढ़ना चाहिए। मुमुक्षु जीवन और साधना का क्रम सौभाग्य से प्राप्त होता है। आध्यात्मिकता से विहीन भौतिकता दुःख का कारण बन सकती है। इसलिए भौतिकता का उपयोग करते समय उसमें आध्यात्मिकता को भी सम्मिलित करें। यदि हम युग के साथ चलें, तो युग भी हमारे साथ चलेगा, लेकिन आध्यात्मिकता को साथ बनाए रखें। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम जीवन में लागू किए जा सकते हैं। अणुव्रत का कार्य जैन-अजैन सभी के लिए उपयोगी है। अणुव्रत सप्ताह भी अक्टूबर में आ रहा है। अणुव्रत तो हर जगह—चौराहों, बाजारों, और जेलों में भी रहना चाहिए। अणुव्रत व्यापक है, और इसके कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए। 75 वर्षों बाद भी अणुव्रत चल रहा है।
मनुष्य को जागरूक रहना चाहिए और धर्म की ओर ध्यान देना चाहिए। आत्मा के प्रति जागरूक रहना चाहिए। आत्म-कल्याण की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। बचपन में साधुपन मिलना और उसे सही प्रकार से पालना बहुत बड़ा सौभाग्य है। गार्हस्थ्य जीवन में भी धर्म का अनुसरण किया जा सकता है। बारह व्रत, अणुव्रत और संयम को धारण किया जा सकता है। पर्युषण का सही लाभ उठाना भी मानव जीवन की सफलता के लिए एक महत्वपूर्ण बात हो सकती है। 'बच्चों का देश' पत्रिका प्रकाशन के 25 वर्ष पूर्ण होने पर रजत जयंती विशेषांक पूज्य सन्निधि में लोकार्पित किया गया। इस अवसर पर अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष अविनाश नाहर एवं संपादक संचय जैन ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया। किशोर मंडल और कन्या मंडल ने चौबीसी के गीतों की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।