सुख-दु:ख की परिस्थितियों में रखें समता भाव : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सुख-दु:ख की परिस्थितियों में रखें समता भाव : आचार्यश्री महाश्रमण

भाद्रव कृष्णा अष्टमी, जो जन्माष्टमी के रूप में विख्यात है, आज के दिन देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण, मुनि गजसुकुमाल के बड़े भाई और भगवान अरिष्टनेमि के चचेरे भाई थे। निर्ग्रन्थ वाणी के अनुसार, श्रीकृष्ण की आत्मा आने वाले उत्सर्पिणी काल में तीर्थंकर रूप में अवतरित होगी और मोक्ष का वरण करेगी। जन-जन की आस्था के राम, हर मन को मोहने वाले आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी की अमृत देशना प्रदान करते हुए कहा कि आयारो में समता की साधना का, समता धर्म के आचरण का संदेश दिया गया है। जीवन में कभी हम हर्ष से भर जाते हैं, तो कभी आक्रोश या गुस्से में आ जाते हैं। जब अनुकूल परिस्थिति आती है, तो व्यक्ति खुशी से झूम उठता है। प्रतिकूलता में व्यक्ति दुखी हो जाता है, आक्रोशित हो जाता है, और मन में कष्ट अनुभव करने लगता है। यह जीव अनेक बार उच्च गोत्र वाला हो गया, और अनेक बार नीच गोत्र वाला भी हो गया। तो फिर खुशी किस बात की मनानी और गुस्सा किस बात का? कोई हीन नहीं है और कोई अतिरिक्त भी नहीं। व्यवहार जगत में उच्चता और हीनता होती है, परंतु यह सिर्फ इस जीवन के संदर्भ में है। हमें आत्मा पर ध्यान देना चाहिए। आज जो पोता है, वह कभी दादा भी रहा होगा। आज जो संपन्न है, वह कभी गरीब भी रहा होगा। इस प्रकार, पद ऊंचा-नीचा रहा होगा।
अनंत सिद्धों की आत्मा समान है। कोई हीन नहीं है और कोई अतिरिक्त भी नहीं। सभी आत्माओं में अनंत ज्ञान और अनंत दर्शन है। समझदार व्यक्ति को उच्च गोत्र मिलने पर, सम्मान मिलने पर हर्ष में नहीं जाना चाहिए, और अगर नीच गोत्र की स्थिति मिल जाए या अपमान मिल जाए, तो आक्रोश में नहीं आना चाहिए। समता में रहो, समता ही धर्म है। "समया धम्म मुदाहरे मुणि।" हमारे जीवन में सुख-दु:ख की परिस्थितियां आ सकती हैं, पर भौतिकता मिलने पर अधिक खुशी नहीं मनानी चाहिए। यही समता की साधना है।
भगवान ऋषभदेव के वर्षीतप की तपस्या हुई, आहार नहीं मिला, पर समता बनी रही। बाद में ईक्षुरस से पारणा हुआ था। ज्ञानी व्यक्ति न तो हर्ष करता है और न ही गुस्सा करता है। साधु पंडित होता है। गृहस्थ भी समता धारण करे। साधु तो समता की मूर्ति होते हैं। चरित्रवान व्यक्ति ही पंडित कहलाता है। जो राग-द्वेष में रहता है, वह विषयासक्त होता है। मुख्य प्रवचन के पश्चात पूज्यवर ने मुनि गजसुकुमाल के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। पूज्य प्रवर ने आगे फरमाया - आज भाद्रव कृष्णा अष्टमी है। मैंने आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की आज्ञा से भगवद् गीता और आगम पर तुलनात्मक भाषण दिए थे। भगवद् गीता के 18 अध्यायों में श्री कृष्ण व अर्जुन का संवाद है। हम ग्रंथों से अच्छी बातें अपनाकर आगे बढ़ते रहें। तेरापंथ किशोर मंडल सूरत ने चौबीसी और कन्या मंडल ने 18 पाप की ढाल की प्रस्तुति दी। कन्या मंडल ने संकल्प ग्रहण किए।