स्वास्थ्य विज्ञान कार्यशाला का आयोजन
साध्वीश्री डॉ मंगलप्रज्ञा जी के सान्निध्य में, तेरापंथ भवन कांदिवली में स्वास्थ्य विज्ञान कार्यशाला आयोजित हुई। कार्यशाला में उपस्थित संभागियों को सम्बोधित करते हुए साध्वी श्री ने कहा- स्वस्थता की पहचान है जो स्व में स्थित रहे। आज हालात यह है कि व्यक्ति प्रकृति से दूर होता जा रहा है। इसलिए वह स्वस्थ अनुभव नहीं करता। विजातीय तत्वों के घिरा होने के कारण शुद्ध हवा, पानी नहीं मिल रहा। भारत की संस्कृति में स्वास्थ्य की पूरी प्रक्रिया है। आसन, प्राणायाम आदि नियमित स्वस्थता प्रदान करते हैं। भारत की सम्पूर्ण पद्धतियां सम्पूर्ण रूप से अध्यात्म पर निर्भर है। साध्वी श्री ने कहा- तपस्या को परम औषध कहा गया है। तप की आराधना करने वाला अनेक रोगों से मुक्त हो सकता है। इन्द्रिय संयम की साधना हर व्यक्ति को करनी चाहिए। जीवन का प्रथम सूत्र है निरोगी काया। इस अवसर पर अहमदाबाद से समागत प्राकृतिक चिकित्सक धीरेन शरीन का सारगर्भित वक्तव्य हुआ। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा- स्वस्थ रहने के लिए अपने खान-पान पर विशेष ध्यान होगा। शरीर की स्वस्थता, मन की स्वस्थता और आत्मा की स्वस्थता के लिए निरन्तर प्रयास अपेक्षित है। तामसिक और राजसिक आहार से जितना हो सके बचना चाहिए, सात्विक आहार का प्रयोग स्वस्थता के लिए आवश्यक है।