सांसों की सीमा निश्चित है, लेकिन इच्छाओं का कोई अंत नहीं

संस्थाएं

सांसों की सीमा निश्चित है, लेकिन इच्छाओं का कोई अंत नहीं

इंद्रियों और अहंकार पर नियंत्रण के अभाव में दुर्घटनाएं भी घटित हो जाती है। सांसों की सीमा निश्चित है, लेकिन इच्छाओं का कोई अंत नहीं। संतोष के बिना शांति को प्राप्त नहीं किया जा सकता। तपस्या रूपी वृक्ष की जड़ संतोष है, जिसके पास तपस्या रूपी कल्पवृक्ष होता है उसकी सारी कामनाएं पूरी हो जाती है। उसे सब कुछ मिल सकता है। उक्त आशय के उद्गार साध्वी उर्मिलाकुमारीजी ने पूजा प्रमोद मेहता के मासखमण (31 उपवास) और विमलादेवी अमृतलाल वोरा के धर्मचक्र की तपस्या की संपन्नता पर तेरापंथ समाज द्वारा आयोजित तप अभिनंदन कार्यक्रम में तेरापंथ भवन में व्यक्त किए।
आपने कहा महान जैनाचार्य आचार्य श्री सोमप्रभसूरिजी के संस्कृत श्लोक का उच्चारण करते हुए कहा कि तपस्या रूपी वृक्ष की जड़ संतोष है। इसका तना उपशम (क्रोध, मान, माया व लोभ को शांत रखना) है। प्रासंगिक रूप से आपने कहा कि उपशम के अभाव में आज का व्यक्ति लगातार दुखी बनता जा रहा है। तप रूपी वृक्ष इसकी शाखाएं हैं इंद्रिय विजय तथा अपने प्रसन्न रूप से कहा धन की संपदा की अपेक्षा से नियम की संपदा श्रेष्ठ होती है जिसके पास संयम रूपी संपदा होती है वह शांति को उपलब्ध हो सकता है। आपने कहा कि दोनों बहनों ने साहस और मनोबल का परिचय देकर तपस्या को संपन्न किया है। साध्वी मृदुलयशा जी ने साध्वी प्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी के संदेश का वाचन कर कहा कि तीर्थंकर वाणी में कहा गया है कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम और तप इसके रूप है। देवता भी उसे नमस्कार करते हैं जिसका मन सदैव धर्म में रमा रहता है।
इस अवसर पर साध्वी ऋतुयशाजी, तेरापंथी सभा के अध्यक्ष मनोज गादिया, कन्या मंडल, मेहता परिवार, महिला मंडल अध्यक्ष अनिता भंडारी, युवक परिषद अध्यक्ष अभिषेक चोपडा, किशोर मंडल संयोजक तन्मय गादिया, जय ट्रस्ट व तुलसी बाल विकास समिति अध्यक्ष पारस गादिया, तेरापंथी महासभा के संघ समन्वयक दिलीप भंडारी अपने भावों द्वारा तपस्या की अनुमोदना की। कार्यक्रम का संचालन तेरापंथी सभा के मंत्री राजेश वोरा ने किया।