प्रवृत्ति से निवृत्ति की दिशा में गतिमान होने का सुपथ है निर्ग्रन्थ दर्शन

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प्रवृत्ति से निवृत्ति की दिशा में गतिमान होने का सुपथ है निर्ग्रन्थ दर्शन

भारतवर्ष में निर्ग्रंथ दर्शन अति प्राचीन है। यह दर्शन जीवन का महान आधार है। इसका दर्शन और चिंतन सदा समय सापेक्ष रहा है। निर्ग्रंथ दर्शन का अस्तित्व मध्य काल में कुछ क्षत-विक्षत सा रहा पर वर्तमान युग के लिये यह दर्शन महत्वपूर्ण मार्गदर्शक बना हुआ है। निर्ग्रंथ दर्शन के उन मौलिक तथ्यों को वर्तमान युग के सन्दर्भ में प्रकट करना आवश्यक समझा गया।
इसी परिप्रेक्ष्य में चिकमगलूरू में चातुर्मास कर रहे युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि मोहजीत कुमार जी के सान्निध्य में निर्ग्रंथ दर्शन कार्यशाला का आयोजन तेरापंथ युवक परिषद्, चिकमंगलूरू द्वारा किया गया। निर्ग्रंथ दर्शन कार्यशाला के मुख्य अभिभाषक मुनि जयेशकुमार जी ने अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुड़े अनेक विषयों पर प्रस्तुति देकर निर्ग्रंथ दर्शन की महत्ता को प्रकट किया। उन्होंने कार्यशाला में एक साधे सब सधे, 24 तीर्थंकर कैसे एक? अंधश्रध्दा क्यों पनपती है?, क्या है जैन धर्म में चमत्कार को नमस्कार?, लक्ष्मी बड़ी या सरस्वती?, पार्श्व की महिमा क्यों सबसे न्यारी?, उवसग्गहर स्तोत्र का अचिंत्य माहात्म्य, नमस्कार महामंत्र-उद्‌भव विकास, नमस्कार महामंत्र का प्रभाव, यह दुनिया एक अजब माया, जैन संस्कार सुखी संसार, क्या है जातिवाद?, जैन संस्कार विधि, अमूल्य निधि, संघे शक्तिः कलौ युगे, कैसा हो साधर्मिक सहकार?, महावीर का स्वास्थ्य विज्ञान, महावीर का आहार विज्ञान, क्षण की कीमत आंको, धर्मे जये पापे क्षय - भले भलो बुरे बुरो, कैसे हो जीवन में अहिंसा का अवतरण?, क्यों जरुरी अपरिग्रही बनना?, कैसे हो अनाग्रही चेतना का जागरण?, अज्ञानं परमं कष्ट, मैं कौन हूं?, मुनि जयेश की कहानी अपनी जुबानी, मुनि मोहजीत की वैराग्य यात्रा, मुनि भव्य कुमार के अंतः उद्गार, श्रोताओं के अनुभव स्वर जैसे विषयों को अपने संभाषण का विषय बनाया। कार्यशाला के अंतिम दिन आयोजित मंथन समारोह में मुनि जयेशकुमारजी ने कहा निर्ग्रन्थ शब्द जैन धर्म का पर्यायवाची होने के साथ ही हमें अपने शरीर, मन, आत्मा की ग्रंथियों से मुक्त होने की प्रेरणा प्रदान करता है। सभी प्रतिभागी कार्यशाला में प्राप्त बोधि से भीतर की ग्रंथियों को परिष्कृत करने का प्रयास करें। उन्होंने सभी विषयों के कुछ हार्दपूर्ण बिंदुओं की प्रस्तुति दे। उपस्थित प्रतिभागियों को विशिष्ट ज्ञान मंथन करवाया। इस अवसर पर मुनि मोहजीत कुमार जी ने कहा निर्ग्रंथ दर्शन भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर बढने का अन्तः दर्शन है। यह दर्शन प्रवृत्ति से निवृत्ति की दिशा में गतिमान होने का सुपथ है। इस पथ पर चलने को लिए निर्ग्रंथ दर्शन को समझना जरूरी है। यह दर्शन ही हमारी भाव धारा को प्रकृष्ट बना मोक्ष गति की राह को प्रशस्त बनाता है।
मुनि भव्यकुमार जी ने कार्यशाला के उद्देश्य एवं परिणाम पर विशद विचार प्रस्तुत किए। श्रोताओं में ताराचंद बरलोटा, नितेश नाहर, मदन गादिया, सुरेन्द्र गोखरु, भरत बरलोटा, दीक्षा डोसी, लाजवंत गादिया ने अपने अनुभूति स्वरों को प्रकट किया। कार्यशाला के व्यवस्थापन में तेयुप अध्यक्ष जयेश गादिया, मंत्री राकेश कावड़िया का विशेष योगदान रहा।