लिया है संथारा स्वीकार

लिया है संथारा स्वीकार

लिया है संथारा स्वीकार।
शासनश्री सती रतनश्री जी ने किया बहुत उपकार।।
रत्न चतुष्टय सम दीक्षित हैं चारों बहनें गण में,
तीनों बहनों के संथारे भिक्षु वन उपवन में।
एक बहन ने करवाया संथारा हिम्मत धार ।।
आर्य तुलसी से महाश्रमण तक सेवा गण में साजी,
साध्वीश्री का संयम जीवन करता सबको राजी।
बाजी जीती जीवन का है अन्तर्मन गुलजार ।।
धाम प्रमुखाश्री जी का वात्सल्य पीठ यह दिल्ली,
श्रावक समाज भी धन्य हुआ साक्षी महरौली दिल्ली।
अक्षय पथ पर विजय वरो, खुला है मुक्ति द्वार ।।
विमल मुनि अरु सहवर्ती संत करे कामना प्रतिपल,
गुण स्थानों की श्रेणी चढ़कर पाओ शिव, सुख मंगल।
मनवांछित सब काम सरे, हम करें मधुर गुंजार।।
लय - सुगुरु को वंदन शत् शत् बार