उपशम रस की बहती धारा
उपशम रस की बहती धारा,
वर्धमान परिणाम, सजगतापूर्वक अद्भुत संथारा।
शासनश्री का अतुल आत्मबल विस्मित है परिसर सारा।।
नाम 'रत्न' चारित्ररत्न को खूब तराशा जीवन भर,
संघ भक्ति, संकल्प शक्ति से सतत मथा श्रुत रत्नाकर।
संयम जीवन सदा निखारा, निष्ठा पंचक के द्वारा।।
श्रद्धा विनय समर्पण से गुरुवर त्रय की आराधना,
पल-पल सफल बनाया कर स्वाध्याय योग की साधना।
ओजस्वी वाणी से दे संबोध अनेकों को तारा।।
दीर्घकाल से राजधानी दिल्ली में आप प्रवासित हैं,
जागरूक चर्या से श्रावक समुदय सहज प्रभावित है।
हुआ असातोदय समता से तोड़ी कर्मों की कारा।।
जाग उठा पौरुष गुरुवर आज्ञा से आजीवन अनशन,
देह भाव से ऊपर उठकर करती हरदम आत्म रमण।।
आत्मलीनता वीतरागता का फैला है उजियारा ।।
रहे चमकता नाम आपका अंबर में ज्यों ध्रुवतारा ।।
लय - जागो बहिनों! नवप्रभात